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और उस समय प्राव पवंत के मार्ग जब कहीं अधिक वीहड़ और अगम्य थे। आज जो दर्शक पनको सड़या के द्वारा इन मन्दिरो के फला-दर्शन हेतु जाते है, वे उस दुर्गमता की कल्पना नही कर सकते। इसलिए ताजमहल के साथ तुलनात्मक दृष्टि से विचार करते समय हमे इस परिश्रम पौर पगन्यता का भी ध्यान रखना होगा । दूसरी दृष्टि से ताजमहल जहा मुगल सम्राट के पत्नीप्रेम की स्मृति का प्रतीक है, और एक सम्राट के शक्ति, घन और प्रभाव में निर्मित वस्तु वहां पाबू फे यह जैन मंदिर उन जैन मनियो को पवित्र पार्मिक महत्वाकाक्षा और उनके एक सीमित यल-भय के प्रतीक है। नीलिए नहा-जहा वाजमहल के निर्माण मे शाहजहा की शासन सत्ता ने भाग लिया, पहा मन्दिरो के निर्माण में हजारो शिल्पियो और मजदूरो की पवित्र धार्मिक भावना ने मान लिया है, जिनके यश वे वपों तफ अयक भाव से प्रावू पर कलासर्जना करते रहे । उनके सामने पूजी का वह लोभ न या, जो ताजमहल के निर्माता कलाशिल्पियो के सामने । पहा पर उन पलाशिल्पियो ने जी सोल कर अपनी कलासर्जना की प्यास बुझाई और वे उसे परम सीमा तक पहुंचा देने में सफल हुए है । उनके अतिसूक्ष्म और विराट कलाचित्र को देखकर विदेशी निर्माणकला विचारर भी दग रह जाते है । संगमरमर की कला का निखार यहा ही देखने में आता है। अध्ययन की दृष्टि में देखने पर हमे इन जैन मन्दिरो मे जैन धर्म की संस्कृति का इतिहास एक प्रकार से बरे आफपंक ढग से सचित्र और सजीवता के साथ लिखा हुआ दिखाई देता है। हम नवमं गम्मन्धी भावनाओ पोर आचार-विचारो और उसके विकास की वारीक वातो को पाज के मन्दिरी पो में स्पष्ट रूप से अकित देख सकते है । यही नहीं वरन् एक ऐतिहासिक युग पी बंपरा, रीति-रिवाज और लोकरुचि की सागोपाग झलक इन मन्दिरो में दिखाई देती है। प्रजन्ता चौर एल्लोरा की गुफाओ के समान हम नाट्य, नस्य और संगीत तथा भावविन्यास का विगद चित्रण पाते है, जो अध्ययन की दृष्टि से एक विश्वविद्यालय का काम दे सकता है। मूर्तिकला और धातुकला का भी चरम विकास इन मदिरो मे देखने को मिलता है । मदिरो मे भिन्न-भिन्न तीर्यकरी और मुनियो को जो मूर्तिया है वे आकार प्रकार में काफी विशाल है। एकएक मूर्ति कई-फर मन वजनी है, ऐसे वजन की विशाल मूर्तिया भारत के बहुत ही कम मन्दिरो में पाई जा सकती है।
इन मदिरों में जैन धर्म और सस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से जहा आप अक्षय भण्डार भरा पाएंगे, वहा पापको जैन और हिन्दू धर्म की मिलीजुली संस्कृति की भी झलक विभिन्न चिनालेसो में देखने को मिलेगी। इससे पता चलता है उस काल के निर्माता किस प्रकार अपने समकालीन हिन्दू धर्म और सस्कृति से प्रभावित थे और किस प्रकार समवगों की भावना का एकीकरण था। इन मदिरो के बीच मे श्रीकृष्ण भगवान के चरित्र की कथाएँ, नरसिंह अवतार की कथा और महाभारत काल की कथाएं वडी सुन्दरता के साथ भकित पाते है जिनकी पूर्णता पर दर्शक घरबस मुग्ध हो जाते हैं।
मेरी दृष्टि मे वह धर्म ही नहीं जो अपने जीवन को सुधारने के लिए इस जीवन को मक्लिप्ट बनाये विगाड़े । वस्तुत धर्म की कसौटी अगला जीवन नही, यही जीवन है।
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