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उन वोगे की सतान जिन्होंने भारत भूमि पर राज्य किया है और निम्न्दर जैसे वीर राजा को जो यूनान से योरोन को फतह करता हुआ ईरान पर विजय पाकर भारत को पराजित करना चाहता था, भारत से खदेड भगाया था। क्या आज वह जाति इस कदर नपुंसक हो गई है। कि वह अपने पूर्वजो के बनाये हुए धर्मस्थान, देवालय तथा स्मारकों की भी रक्षा नहीं कर सकती । यदि यही दशा रही तो एक दिन आयेगा कि हमारे अपने-अपने नगर और ग्राम के मन्दिरों तथा धर्मस्यानो का भी यही हाल होगा । कोई भी शक्तिवान अनुचित रूप से हमारे मन्दिरों और धर्मस्थानो पर कब्जा कर लेगा और कहेगा कि इतना टैक्स या पैसा दोगे तो फिर दर्शनों की काज्ञा मिलेगी । इम समय हमारे सामने श्रावू रोड पर दिलवाड़ा के जैन मन्दिरों का उदाहरण उपस्थित है ।
Mia के जैन मन्दिरो के विषय में समाचारपत्रों में काफी प्रकाश डाला जा चुका है। आज तो यही निर्णय करना है कि क्या हम इसी तरह ने इन मन्दिरों पर प्रतिदिन नए-नए टैक्स देते रहे और एक दिन ऐसा आए कि टैक्स तथा वन्वन इस कदर बढ़ जायें कि तावारण भाइयों को इन मन्दिरो मे पूजन-प्रक्षाल तो क्या दर्शन करना भी दुर्लभ हो जाय। मेरा अपना यह अनुमान है कि आबू रोड पर जो इस प्रकार टैक्स बढ़ा है सब हमारे असगठन, लापरवाही और दब्बू नीति के कारण बढा है | यदि अब भी इस ओर ध्यान न दिया गया तो भय है कि हम कहीं इससे भी बिल्कुल हाय न धो बैठें जैसा कि इन मन्दिरो के साथ जो गाव लगे हुए थे उनका इन मन्दिरों के साथ आज कुछ भी सवव नही दीख पडता ।
इन अनुचित टैक्सो को कैसे दूर कराया जाय, इसके विषय में मैं अपने विचार समाचार पत्रों में पहले प्रकट कर चुका हूँ । मेरे पास बहुत मे पत्र आए हैं जिनमे मेरे भाइयों ने सत्याग्रह करने की सम्मति दी है। मैं जवानी जमा-खर्च पर विश्वास नही करने वाला, मैं तो कार्य को कार्य रूप में परिणत करना चाहता हूँ और मेरा पूर्ण विश्वास कि ससार में कोई बात असम्भव नहीं है । परन्तु किसी बड़े काम करने के लिए सबसे पहले साहस, उत्साह और संगठन की आवश्यकता है । मैं तो ममाज और देश का एक सिपाही हूँ । आप महानुभावो की आज्ञा से आया हूँ । आप निर्णय करके बताइए मुझसे क्या सेवा चाहते है। टैक्सों को हटवाने के लिए क्या करना है ।
इस विषय मे मे सम्मति यह है कि सबसे प्रथम आवश्यक है कि तमाम सम्प्रदायों के जैनो की एक शक्तिशाली समिति बनाई जाय जो इम काम को अपने हाथ में ले । इनके द्वारा स्थान-स्थान पर स्थानीय समितिया बनाई जायें ताकि काम सुचार रूप ने प्रारम्भ किया जाय । बिना सगठन के कोई काम सफल नही हो सकता । इसके पश्चात् समाज के धनी-मानी महानुभाव का एक डेपुटेशन राज्य के अधिकारियो से मिले और उनसे प्रार्थना करे कि वह अनुचित टैक्सों को कम करें। यदि डेपुटेशन को सफलता न हो तो फिर सारे देश में इसका आन्दोलन किया जाए और एक दिन नियत करके विरोधी सभाए की जाय। उस दिन प्रस्ताव पान किए जायें और उनकी प्रति रियासत तया सरकार के उच्च अधिकारियो के पास भेजी जायें।
यदि इमसे भी कुछ सफलता न हो तो फिर अन्तिम योजना नत्याग्रह की रह जाती है [ २८५