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उद्घाटन से इस समय तक लगभग एक सौ विद्यार्थी (भील बालक) आश्रम में प्रविष्ट हो चुके है और इस समय कितने ही माता-पिता अपने बच्चो को पाश्रम में प्रविष्ट कराने के इच्छुक है। माता-पिताओं का बच्चो को आश्रम में दाखिल कराने को इच्छुक होना इस बात का द्योतक है कि उनके हृदय मे शिक्षा प्राप्त करने की कितनी उत्कण्ठा है। दूसरी बात यह भी है कि वे लोग अपने घर मे बच्चो को भर पेट भोजन नहीं दे सकते ।
शिक्षा-प्रविष्ट होते समय जो बालक, असभ्य, हिंसक तथा निरुद्यमी थे, वही बालक माज विनम्र, विनयशील, अहिंसक तथा सभ्यता के पुतले बने है । जिन्हें बोलने तक की तमीज नही थी, वही बालक आज मधुर कण्ठ से सुबह शाम भगवान की स्तुति करते तथा कन्नि से कठिन हिन्दी व सस्कृत के शब्दो का उच्चारण करते हैं ।
कृषि-विभाग के लिए भूमि -गंगासिंहजी द्वारा प्राश्रम को पाच सौ बीघा जमीन भेंट स्वरूप प्रदान की गई थी। उसी के कुछ भाग में खेती की जायगी और वालको को कृषि की शिक्षा सुन्दर तरीके से देने के साथ-साथ उमसे आश्रम की प्राधिक कठिनाई भी बहुत कुछ हल हो सकेगी।
गोशाला विभाग-आश्रम के ही अन्तर्गत एक गोशाला विभाग भी रखा गया है। जिसमें भील बालको को गो-भक्ति की शिक्षा देने के साथ-साथ सुन्दर सुडौल बैल भी तैयार किये जाएंगे।
१ उद्योगशील विभाग में इस समय पेपर इन्डस्ट्री का कार्य बड़ी सफलतापूर्वक चल रहा है। भील वालको द्वारा पेपर, ब्लाटिंग पेपर, राईटिंग पेपर तथा लिफाफे तयार किये गये है, जो कि शीघ्र ही वानार मै पा रहे हैं ।
२ बास की चि, चटाइया आदि बनाने का कार्य भी प्रारम्भ हो गया है।
३ रूई के सुन्दर खिलौने बनाने के लिए एक मद्रासी सज्जन आ गये है अत यह कार्य शीघ्र ही वालको को सिखाना प्रारम्भ कर दिया जायगा ।
कुछ कार्य और भी है जो कि इनमे पूर्ण सफलता मिलने पर प्रबन्धकों द्वारा प्रारम्भ किए जावेंगे।
इस समय सस्था स्टेट की न रह कर पूर्ण रूप से सार्वजनिक बन गई है। सदस्यो को पाजीवन, सहायक, सरक्षक तथा शुभचिन्तक मावि श्रेणियो मे वाटा गया है। १००१), १०१) तथा ५१) २० देने वाले सज्जन क्रमश सरक्षक, सहायक तथा शुभचिन्तक कहलाएंगे । अत माशा है कि जनता अधिक से अधिक संख्या में उक्त सस्था के सदस्य बनकर एक आवश्यक तथा उपयोगी सस्था को अपनाते हुए, धर्म तथा देशोपकार के काम में भाग लेगी।
विश्व-शान्ति और व्यक्ति की शान्ति, दो वस्तुएं नहीं है। प्रशान्ति का मूल कारण अनियन्त्रित लालसा है । लालसा से सग्रह, सग्रह से शोषण की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।
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