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महापुरुष जो विपत्ति में धर्य क्षमा रखते ऊँचे बन । जगत्प्रलोभन देख नहीं होते चचल मन ॥ सभा भूमि में वचन कुशल है गौरवशाली। युद्ध-भूमि में दिखलाते वीरता निराली ।।
सदाचार सन्याय पर मरने को तैयार है।
महापुरुष वे ही यहां ईश्वर के अवतार है ।। सम्पति पाई हर्ष नही पर माया मन मे। आई अगर विपत्ति क्षीणता नही वदन में ॥ सत्तू पावें कभी-कभी या मोदक पावे । पर घबरावें नही, नही मन मे इतरावे ।
ऐसी जिनकी रीति है पुरुष सदा वे धन्य है । उन समान सौभाग्य तो कभी न पाते अन्य है ।
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स्वदेश सन्देश महावीर के अनुयायी प्रिय पुत्र हमारे-श्वेताम्बर, टूढिया, दिगम्वर-पथी सारे । उठो सवेरा हो गया, दो निद्रा को त्याग, कुक्कु बांग लगा चुका, लगा वोलने काग ।
अंधेरा गत हुआ। उदयाचल पर बाल-सूर्य की लाली छाई; उपा सुन्दरी महो, जगाने तुमको आई। मन्द-मन्द बहने लगा, प्रात मलय-समीर,सभी जातियां है खडी, उन्नति-नद के तीर ।
लगाने डुबकियां ॥ उठो उठो इस तरह कहाँ तक पडे रहोगे, कुटिल काल की कडी धमकियां अरे । सहोगे। मेरे प्यारो । सिंह से, बनो न कायर स्यार, तन्द्रामय-जीवन बिता, बनो न भारत भार ।
शीघ्र शय्या तजो॥ मत इसकी परवाह करो क्या कौन कहेगा, तथा सहायक कौन, हमारे सग रहेगा। क्या चिंता तुम हो वही, जिसकी शक्ति अनत, जिसका आदि मिला नही, और न होगा अत।
अटल सिद्धान्त है।
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