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ठेलो और धार्मिक उत्सवो को सब मिलकर मनाते थे और सम्मिलित होकर पूर्णरूप से भाग लेते थे और उसे सफल बनाते थे। जनता में जैन समाज की वडी धाक थी। शामको को दिल्ली मे जैन धर्म के प्रति बहुत श्रद्वा थी और समाज के लिए सन्मान था।
आज ममाज की दुर्दगा देखकर रोना पाता है। तमाम भारतवर्ष मे समाज का नक्शा बदल गया है। स्थिति चिन्ताजनक और गोचनीय है। आपस मे वह प्रेम नही-समाज मे सगठन नही-विरादरी मे एकता नही-बडे बूढो का अदव-लिहाज नही। प्राचार-विचार ठीक नहीं । धर्म मे रुचि नहीं खान-पान मे शिथिलता आ गई है । कहाँ तक वताए, समाज का सारा ढाचा विगड गया है । हमारे सगठन न होने के कारण हमारे गुरुनो और देवस्थानो पर प्रहार हो रहे है । हमारी कला और संस्कृति को लोग नप्ट करने से भी नहीं चूकते। राज्य मे भी हमारी कोई सुनाई नही और वह प्रभाव नहीं । समाज का यह हाल है कि हर एक अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग अलाप रहे है।
महावीर जयंती और हमारा कर्तव्य
यह सर्वविदित है कि जैन धर्म का सम्बन्ध किसी एक व्यक्ति विशेप से नहीं, अपितु, हर उस व्यक्ति से है, जो अपनी इद्रियो पर काबू पाकर सासारिक वासनामो को जीत सके । इद्रियो के जीतने वाले को जिन या जैन कहते है ।
जैन धर्म एक सार्वभौमिक धर्म है, और मनुष्यमात्र इसको अपना सकता है। यह आवश्यक नही कि वह किस जाति, सम्प्रदाय अथवा समाज से सम्बन्ध रखता है, बल्कि जो व्यक्ति जैन धर्म के सिद्धान्त मे विश्वास रखता है और उनका पूर्णरूपेण पालन करता है वह जैन है।
ऐतिहासिक प्रमाण जैन धर्मानुयायियो ने समय समय पर अपनी गैरता और धर्मपरायणता के जो कार्य किये एव देश के निर्माण मे-जो अद्वितीय भाग लिया उससे जैन समाज का ही नही वरन् भारत भर का मस्तक ऊचा हुआ है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक इसके प्रमाण मिलते हैं। १९. ].