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जैन समाज के संगठन कां रूप कैसा हो
एक मंच और प्रचार की आवश्यकता
सन् १८५७ के गदर के बाद कुछ वर्षों तक भारतवर्ष के हालत बहुत बिगड़े रहे। सारे देश मे प्रातक छाया रहा और जनता भयभीत रही, जिसके कारण सब कामो मे शिथिलता आ गई । धीरे-धीरे विदेशी शासको के पाव पूरी तरह भारतवर्ष मे जम गए तव जनता को भी कुछ चैन मिला | विदेशी शासको को भारतवर्ष में राज्य के कार्यों को चलाने के लिए क्लकों की जरूरत पडी । उन्होंने अपने डग की शिक्षा मिखाने के लिए स्कूल और कालेज खोले । विदेशियो की शिक्षा आचार-विचार, रहन-सहन और खान-पान मे और भारत की शिक्षा, सभ्यता, आचार-विचार, रहनसहन, और खान-पान मे बहुत अन्तर था ।
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कुछ ही दिनों वाद जनता ने अनुमान किया कि हमारे बच्चों में नैतिकता और वामिक सस्कारो की कमी होती जा रही है, जिसके बिना मनुष्य का जीवन सार्थक नहीं। यदि इस ओर ध्यान न दिया तो हमारा पतन हो जाएगा। तमाम देश में एक ऐसी लहर दौडी कि भारतवर्ष की सव जातियो, समाजां और वर्गों ने नैतिक और धार्मिक संस्कार बच्चो मे पैदा करने के लिए अपना-अपना सगठन बनाकर उनमे नैतिकता और धर्म-शिक्षा का प्रचार करने के लिए विचार किया ।
जैन समाज में भी जागृति की लहर दौड़ी । सन् १८७५-७६ के लगभग जैन समाज के कुछ विवेकशील उत्साही और वर्म-प्रेमी नवयुवक विद्वानों का एक दल मैदान में आया जिनके हृदयो मे समान - सगठन और धर्म प्रचार की उत्कट भावना और तडप थी। उन्होंने समाज संगठन और धर्म-प्रचार का दृढ निश्चय कया जिनमे प० गोपालदास जी वर्रया - प० चुनीलालजी -- पं० मुकंदीराम जी मुरादाबाद, प० छेद्रालाल जी अलीगड - पं० प्यारेलाल जी अलीगढ़ और प० धन्ना लाल जी कासलीवाल के नाम विशेषकर उल्लेखनीय है । यह सब विद्वान अपनी-अपनी दिशाधो अपने-अपने ढंग से समाज सगठन और धर्म प्रचार का काम करने लगे । प० छेदालाल जी और प० प्यारेलालजी ने पाठशाला की स्थापना की और बहुत से विद्वान तैयार किए। अन्य विद्वान देश के चारो कोनो मे निकल पड़े, स्थान-स्थान पर घूमकर लोगों को इकट्ठा करना, सभायें बुलाना, भापरण व उपदेश देना और स्थानीय सभायं कायम करना मुख्य कार्य था। सैकडों स्थानो में सभायें बन गई । सभायं बनने के बाद लोगो के दिलो में भावना पैदा होना स्वाभाविक था कि समाज को संगठित किया जाय जिससे कि तमाम भारतवर्ष के दिगम्बर जैन समाज को एक सूत्र मे पिरीया जा सके और उसके द्वारा वर्म और समाज की उन्नति के उपाय तोचे जायें और ठोस कार्य किया । इन महानुभावी ने बडे उत्पाह और लगन के साथ काम किया जाय । बीच में बहुतसी अडचने आई पर हिम्मत नहीं हारी और अपना ध्येय पूरा करने मे जुटे रहे।
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