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गया। इसकी वास्तविक कहानी से जो लोग परिचित है, वे इस विशेषण पर हँसे बिना नही रह सकते । वास्तविक घटना इस प्रकार है
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१६२७ मे सम्मेद शिखर पर बडा भारी जैन महोत्सव हुआ । लगभग १ लाख जैन जनता वहा उपस्थित थी। इस अवसर पर वही परिषद का अधिवेशन भी किया गया । परिषद के विरोधी प्रतिक्रियावादियो ने जनता और मुनिजन को भ्रम मे डालने और परिपद का विरोधी बनाने की दृष्टि से एक महान पड्यन्त्र रचा। उसकी श्रोर से जोरदार प्रचार किया गया कि परिपद विधवाविवाह की प्रचारक है ।
इस जोरदार प्रचार से जैन समाज मे बवण्डर खडा हो गया । परिषद के अनेक समर्थक
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वडा गये । परिपद मे दो विचारधाराए स्पष्ट दीखने लगी। एक पक्ष कहने लगा कि प्रतिक्रियावादियो के झूठे प्रारोप व प्रचार का प्रतिरोध करने की दृष्टि से विधवा-विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव परिषद् पान करे । दूसरे पक्ष की सम्मति थी कि यदि इस प्रस्ताव को पास कर दिया गया तो सेतवाल, चतुर्थ, पंचम आदि जैन जातियो के लिए, जिसमे विधवा विवाह जारी है, परिषद का द्वार बद हो जायगा । परिपद उस दशा मे समस्त दिगम्बर जैन समाज की प्रतिनिधि नही रह सकेगी ।
अन्त मे इसी पिछले पक्ष की बात स्वीकार हुई और सम्मेलन मे विधवा विवाह के विरुद्ध कोई प्रस्ताव पास नही किया गया । तथापि इस मिथ्या प्रचार से परिपद को कुछ काल के लिये भीषण धक्का पहुचा और कितने ही व्यक्ति उससे पृथक हो गये । आज भी परिषद की नीति इस प्रश्न के सम्बन्ध मे यही है । जिन जैन समाजो अथवा व्यक्तिगत परिवारो मे विधवा-विवाह प्रचलित है, परिपद उनका बहिष्कार करने के पक्ष मे नही । वह इस कदम को जैन एकता के प्रतिकूल समझती है ।
परिपद के पिछले ३७ वर्षो के कार्यो और उसकी सफलताओ का कच्चा चिट्ठा सक्षेप मे इस प्रकार यही है कि विरोधियो की गालियो और भाति भाति के नाम देने के बावजूद परिषद जैन समाज को एक सूत्र मे बाघने वाली मजबूत कडी सिद्ध हुई है । यह काम उसने अनेक सामयिक श्रान्दोलनो मे सहयोग देकर, कुप्रथाओ के विरुद्ध आवाज उठाकर, समस्त जैन-बन्धुप्रो के लिए समान अधिकारो की व्यवस्था कर और साहस और धीरज के साथ सत्य और श्रहिंसा की नीति पर डटे रहकर सम्पन्न किया है ।
सन् १९५० का दिल्ली मे रजत जयन्ती अधिवेशन एक ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण था जिसमे कि हरिजन मन्दिर प्रवेश प्रस्ताव पास किया गया था। इस अधिवेशन के सभापति साहू श्रेयासप्रसाद जी थे । ज्योही यह प्रस्ताव मच पर प्राया प्रतिक्रियावादियो ने हुल्लड मचाकर मच पर धावा बोल दिया | परन्तु परिषद के कार्यकर्ता डटे रहे और अगले रोज खुले अधिवेशन मे शान के साथ यह प्रस्ताव पास हुआ और प्रतिक्रियावादियो को मुहकी खानी पडी ।
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