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पहले ही गुरुजी से यह निवेदन कर देते है कि हमारे बालक को वह शिक्षा देना जिससे वह
आनन्द से रोटी खा सके। जिस देश मे बालको के पिता ऐसे विचार वाले हो वहाँ बालक विद्योपार्जन कर परोपकारी बनेगे, असम्भव है। आजकल शिक्षा का प्रयोजन केवल अर्थोपार्जन तथा कामसेवन मुख्य रह गया है। स्कूलो में धार्मिक शिक्षा का प्राय प्रभाव है। नागरिक बनने का कोई साधन नहीं। ऊपरी चमक-दमक मे ही सर्वस्व खो दिया।" वस्तुत शिक्षा का उद्देश्य जबतक धनार्जन-मात्र रहेगा, धार्मिक एव नैतिक विचारधारा को प्रमुख न बनाया जायगा तबतक हमारा बौद्धिक विकास नहीं, विनाश ही होगा। और यह विनाश भनाकाक्षित एव असामयिक होने से बहुत खटकने वाला होगा । सुदूर भविष्य मे, खटके या निकट भविष्य मै, खटकने वाला अवश्य हे। हमे चेतना होगा, और अपनी शिक्षा सस्थामो के पाठ्यक्रम को सर्वतोमुखी लाभदायक बनाना होगा जिसमे धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा की प्रधानता होगी। इसके लिए अच्छा यह होता कि स्कूल और कालेज खोलने की अपेक्षा जहाँ कारोज तथा स्कूल है वहा जैन छात्रावास स्थापित किये जाए । छात्रो का खान-पान, दिनचर्या जैन सस्कृति के अनुसार बनाये रखने के लिए यह बहुत जरूरी हो गये है। जिन्होने प्रयाग विश्व-विद्यालय का जैन छात्रावास देखा है वे इस तथ्य को जानते है । बम्बई वाले सेठ श्री माणिकचन्दजी की भी यही योजना रहा करती थी पर उस समय न तो इतने स्कूल और कालेज थे और न किसी का ध्यान भी उस ओर अधिक गया। सबसे पहले तो आवश्यक है माता-पिता ध्यान दे । अपने बच्चो का खानपान शुद्ध रखे और जब पढने भेजे तब ऐसे ही विद्यालयो मे भेजे जिनके पास जैन सस्कृति को प्रोत्साहन दिये रहने वाले छात्रावास हो । आगे चलकर यही छात्र गृहस्थ होते है, पिता के पद पर पहुचते है और यह स्वाभाविक है कि जैसे सस्कार उनके होगे वैसे ही इनके बच्चो के भी होगे । प्रत यदि अच्छे सस्कारो की परम्परा चली तो वह अधिक करयाणकारी होगी, जैनधर्म की प्रचारक होगी।
पशु-हत्या बन्द करात्रो अन्यथा भारत देश तबाह हो जाएगा
भीषण पशु हत्या के कारण देश की समृद्धि नष्ट हो रही है । आज से ढाई हजार वर्ष पहले की बात है कि उस समय हमारे देश में पशुमो की घोर हत्या होती थी । धर्म के नाम पर जीवित पशुओ को हवन' कुन्डो की प्रज्वलित अग्नि मे डाल दिया जाता था। उस समय अज्ञानान्धकार, आडम्बर और प्रशान्ति का साम्राज्य था।
उस ही समय प्रात.स्मरणीय १००८ भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ। १२ साल की कठिन तपस्या के बाद उन्हे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होने अपने आत्मबल और और ज्ञान द्वारा अनुभव किया कि जब तक पशुओ की हत्या बन्द नही होगी तबतक ससार मे सुख और शान्ति स्थापित नहीं हो सकती । उन्होने पशु-हत्या बन्द कराने का दृढ निश्चय किया । १६० ]