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लालाजी के नेतृत्व में परिषद् का शानदार अधिवेशन
श्री पंचरत्नजी
आपके प्रधान मत्रित्वकाल मे परिषद के तीन अधिवेशन हुए। तीनो ही अधिवेशन बहुत ही शानदार ढग से सम्पन्न हुए। जिसमे हजारो की संख्या में देश के विभिन्न भागो से जन कार्यकर्ता और समाज सेवी सम्मलित हुए। उन्ही अधिवेशनो में एक सतना अधिवेशन किस प्रकार सम्पन्न हुआ उसका दिग्दर्शक आपके सामने है। परिपद् की जन्मभर सेवा करने वाले पडित रामलालजी पचरत्न उस समय प्रचारक थे उनकी ही क्लम से आँखो देखा हाल अधिवेशन का इस प्रकार है।
सतना अधिवेशन
परिपद अधिवेशन का निमंत्रण सतना से आया था परन्तु कारण विशेप से १ सप्ताह बाद पत्र मिला कि जो निमंत्रण सतना मे परिषद् अधिवेशन का दिया गया था उसे कैन्सिल कर दिया जाय प्रादि।
अव मैं बाहर से आकर प्रधान मत्री परिपद् लाला सनसुखरायजी से मिला तो कहने लगे वर्ष अधिवेशन का समाप्त होने वाला है । निमत्रण सतना का आया था पर न मालूम क्यो इन्कार करते हैं । आप बिस्तर न खोलें और तुरन्त सतना जाकर व्यवस्था करें और कारण ज्ञात करें मैं उसी क्षण सतना को रवाना हो गया अगले दिन दोपहर के समय सतना पहुंचा मालूम हुआ कि श्री मदिरजी मे मीटिंग हो रही है मैं वहां पहुंचा । लोगो से मिला । लोगो ने कहा कि पब्जी सतना मे रथ ५० वर्ष से निकला नहीं है । श्री महाराजा रीवा नरेश ने बडी कठिनता से इस वर्ष रथ निकालने की आज्ञा दी है हम लोग ठाठबाट व प्रभावना के साथ जैन रथ निकालना चाहते है। यह भी समाज ने निश्चय किया था कि दि० जैन परिपद् को निमत्रित भेज दिया जाए। निमत्रए गया भी, परन्तु जब हम लोग सिवनी रथ मांगने गये जो कि बडा सुन्दर बना हुआ है वहाँ के समाज ने कहा कि अगर तुम रथोत्सव पर जन महासभा को निमत्रण करते हो तो हम रथ देने को तैयार हैं अन्यथा नहीं इस मजदूरी को देखते हुए हम जवानी स्वीकृति दे पाये हैं । इसी सवध मै आज मीटिंग थी। मीटिंग के निश्चयानुसार निमत्रण महासभा को भेजना स्वीकार किया गया है और यह निमत्रण है जो भेजा जा रहा है । मैंने माघ घटे परिषद् के सवध मे जोगीला भाषण दिया । फल यह हुआ कि परिषद् को भी निमत्रण दे दो। दोनो के एकीकरण होने का श्रेय सतना को प्राप्त होगा। मैंने कहा रही रथ की बात सो पन्जी कह ही रहे हैं कि मेरी जिम्मेवारी है हम रथ का प्रवन्ध कर देंगे। निमत्रण परिषद् को पुन लिखा गया। यह मुझे दिया गया। महासभा का निमंत्रण जो डाक मे डालना था वह भी लिया और वापिस होकर तार द्वारा सूचन्ग निमत्रण की दी। वहाँ से तार द्वारा जैन मित्र, सदेश आदि को खबर कर दी गई। अगले अक मित्र सदेश मे "परिपद्
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