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और काग्रेस मे उनकी काफी प्रतिष्ठा थी। उनकी प्रतिभा चौमुखी थी, गजव की काम करने की शक्ति, सूझ-बूझ, कठिनाई मे रास्ता निकालने की वुद्धि सदा मुस्कराता चेहरा, काम करने की लगन, सदा उनकी याद दिलाती रहेगी।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद मैं मध्यभारत का मन्त्री वना । मेरे लम्बे मन्त्रिकाल मे भी मेरा उनका सहयोग सार्वजनिक कार्यों मे वरावर रहता रहा। भारत के इस सपूत और जैन समाज के योग्य नेता के समय मे उठ जाने से जो क्षति हुई है वह सहज मे पूरी होने वाली नही है । मै उनके प्रति अपनी नम्र श्रद्धाजलि इस अवसर पर भेंट करके अपने को धन्य मानता हूँ । उनकी स्मृतियाँ मेरे हृदय पटल पर सदा श्रकित रहेंगी जो मुझे प्रेरणा देती रहेगी ।
परिषद् के प्रमुख संस्थापक
जैनविम्व प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर देहली में ता० २६ जनवरी सन् १९२३ को श्री मा० दि० जैन महासभा का अधिवेशन श्री खण्डेलवाल सभा के मण्डप मे हो रहा था । श्रीमान् साहू जुगमन्दिरदासजी ने "जैन गजट" के उपसम्पादक के लिए स्व० वावू चम्पतरायणी वैरिस्टर का नाम पेश किया । इसका समर्थन डा० निर्मलकुमारजी ने किया, किन्तु कुछ सज्जनो ने माननीय वैरिस्टरजी (जो महासभा के सभापति पद को सुशोभित कर चुके थे और उन्होने अपने सभापतित्व मे महासभा की श्लाघनीय सेवाए की थी) को अयोग्य शब्द कहे, जिनसे झलकता था कि वे बैरिस्टरजी को जैनधर्म का अश्रद्धालु, प्रमाणित कर रहे है । इस अयोग्य वर्ताव से अनेक जनो का मन महासभा के प्रविवेशन में सम्मिलित होने से उदास हो गया ।। इसी कारण वे लोग रात को महासभा की सबजेक्ट कमेटी में सम्मिलित न होकर सामाजिकउन्नति तथा धर्म प्रचार के लिए एक अन्य सगठन का विचार करने में लग गये। इन सज्जनो की दूसरे दिन २७ जनवरी को सभा हुई। इस दिन की कार्यवाही 'जैनमित्र' वर्ष २४, अक १४, पृष्ठ १९४ पर जो प्रकाशित हुई थी, वह इस प्रकार है
दिगम्बर जैन परिषद की स्थापना
देहली मे ता० २७ जनवरी सन् १९२३ ई० को राय साहव बाबू प्यारेलालजी वकील देहली के डेरे मे एक जल्सा होकर निश्चित हुआ था कि इस जल्से के सभापति रायबहादुर ताजिरुल्मुल्क सेठ मणिकचन्दजी झालरापाटन सर्वसम्मिति से निर्वाचित किए जायें। सेठ साहब ने सभापति का आसन ग्रहण किया, तत्पश्चात् निम्नलिखित प्रस्ताव सर्वसम्मति से निर्णीत हुए :
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