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भा० दि० जैन परिषद में जीवन नही था। लालाजी मन्त्री चुने गये और परिषद चमक उठी। उसका विगत चैतन्य लोट पाया । लोग आश्चर्य से देखने लगे। कैसा है यह नादू और इसका जादूगर, जिसने जादूगर की छडी लगाते ही मुर्दो में जान फूक दौ; सोई नसो मे रक्त प्रवाहित होने लगा और मुर्दे जानवारो से भी बाजी मारने लगे। लालाजी के मन्त्रित्व-काल में परिषद सही अर्थों में प्रगतिशील विचारो की एक प्रतिनिधि सस्था थी। परिपद को खड़ा करने में लालाजी को जो कुर्बानियाँ देनी पड़ी, उसका सही मूल्याकन समाज ने कभी नहीं किया, यह इतिहास की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। किन्तु लालाजी के मन पर इसका कभी प्रभाव नही पडा।
आबू का जैन मन्दिर शिल्प और स्थापत्य कला का वे-जोड, अनुपम नमूना माना जाता है। वह पर्यटको का आकर्षण केन्द्र है। सिरोही स्टेट ने वहाँ जाने वाले यात्रियो पर टैक्स लगा दिया। यह असह्य अन्याय था । इसके विरुद्ध लालाजी ने आवाज उठाई। जनता के मन में जो विरोध घुमड रहा था, उसे आन्दोलन का रूप दिया। यह आन्दोलन जनता का आन्दोलन बन गया। सिरोही स्टेट को घुटने टेकने पडे और टैक्स हटाना पड़ा।
पशु-रक्षा-आन्दोलन, दहेज प्रथा विरोधी आन्दोलन, दहेज प्रदर्शन विरोधी आन्दोलन, मरण भोज विरोधी आन्दोलन, सामूहिक विवाह आन्दोलन आदि अनेको आन्दोलन का नेतृत्व करके लालाजी ने अपनी जीवन कार्य-शक्ति का परिचय दिया। वास्तव में लालाजी का जीवन सघर्षों का जीवन रहा है और उन्होने रचनात्मक प्रतिभा और जीवित नेतृत्व से समाज को जीवन-दान दिया है। क्या समाज निर्माण से उनका योगदान किसी भी अर्थ में कम महत्त्वपूर्ण है ?
मरण जीवन का अनिवार्य परिणाम है । किन्तु जन-सेवा करके जिन्होने अपने जीवन को सफल किया है, उनका मरण शोक नही; गौरव का विषय बन जाता है । लालाजी आज हमारे बीच नहीं है, किन्तु उन्होंने अपने जीवन को जन-जन की सेवा मे समर्पित करके सार्थक किया था। उनका जीवन उद्देश्यपूर्ण था। इसलिए उनका मरण भी गौरवशाली और स्मरणीय बन गया है।
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