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इसके साथ-साथ आपका धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र शून्य नहीं रहा । आप राजनैतिक क्षेत्र के योद्धा थे। फिर भी आपकी आत्मा धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र से भी प्रभावित थी । अत. आपने राजनैतिक क्षेत्र में काम करते हुए भी सामाजिक क्षेत्र व धार्मिक क्षेत्र को गौरव नही दिया। सामाजिक क्षेत्र में लालाजी ने कई उल्लेखनीय सेवायें की है जिनके कारण जैनत्त्व चमका और उसकी सस्कृति का सरक्षण हुआ। लालाजी ने जैन समाज की चहुंमुखी प्रगति में योग दिया। बडे-बडे सामाजिक आन्दोलन किए । लेकिन दुख है कि जैन समाज ने उनके साथ पूर्ण सहयोग नहीं दिया , और कुछ रूनि भक्त लोग तो अन्त तक लालाजी के विचारो का विरोध करते ही रहे लालाजी को जैन समाज मे कई वार कठिनाइयो का सामना करना पड़ा है। फिर भी वे अडिग भाव से डटे रहे । वे जानते थे जैन समाज अभी बहुत पिछड़ा हुआ समाज है । वह धर्म क्या है यह भी नहीं जानता। और समाज वैसे ऊंचा उठ सकता है इसका भी विचार नहीं करता । लालाजी ने सक्षिप्त रूप मे यह समझ लिया था कि जैन धर्म एक मानवतावादी धर्म है जहाँ प्राणीमात्र को अपना विकास करने का अवसर दिया गया है। धर्म-जाति वर्ण का कोई स्थान आता नहीं । धर्म तो वस्तुत. स्वभाव है।
लालाजी के विचारो से कुछ बुद्धिजीवी लोग अवश्य प्रभावित हुए, उन्होने एक अखिलभारतीय परिपद के नाम से सगठन किया। और उसकी वागडोर लालाजी के हाथ मे सौप दी। लालाजी उसके महामन्त्री रहे । आपके मन्त्रित्व मे परिपद के कई अधिवेशन महत्त्वपूर्ण रहे।
लालाजी जिस काम को अपने हाथ में लेते उससे वे क्यो पीछे नहीं जाते और न हटते। सामाजिक क्षेत्र में काम करते हुए भी उन्होने कई आन्दोलन ऐसे किये जिनमे दूसरा व्यक्ति सफल नहीं हो सकता था। जैसे महगाव काण्ड प्रावू मदिर टैक्स।
इसके अलावा लालाजी की और भी कई सार्वजनिक सेवाये है, जैसे जैन कोप्रॉपरेटिव बैंक वजन क्लब की स्थापना । नीमखेडा मे ५००० भीलो से मास छुडवाना, मारवाड़ी रिलीफ सोसायटी शाखा दिल्ली के मन्त्री पद पर रह कर मारवाटी भाइयो की अपूर्व सेवा करना, भारत छोडो आन्दोलन मे जेल जाने वाले भाइयो के कुटुम्बियो को मदद करवाना, बनस्पति घी निपेष आन्दोलन करना, अखिल भारतवीय मानव धर्म सम्मेलन के प्रधान मन्त्री बनकर उसे सफल बनाना आदि-आदि।
____ लालाजी की ये सेवायें आज भी मूलरूप ले जीवित है और वे हमे प्रेरणा देती है । लालाजी वास्तव में प्रेरणा के स्रोत थे। जैन युवको का कर्तव्य है कि वे लालाजी के जीवन से प्रेरणा ले और जिन कार्यों से उन्हे रुचि थी उनको पूर्ण करने का प्रयल करें। लालाजी सामाजिक रूढियो के कट्टर विरोधी थे । समाज में प्राज भी कई रूढ़ियां ऐसी है जिनसे समाज जर्जरित हो रहा है जिनमे दहेज प्रथा का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इस प्रथा ने समाज मे इतना घर कर लिया है कि फलस्वरूप समाज की कई अवोध बच्चियो को इस प्रथा के नाम पर अश्रु बहाने पड़ रहे है। क्या समाज हितपी युवक ध्यान देंगे, और इसके विरोध में अपना कदम वढावेंगे। लालाजी आज भी हमको याद आते है । और कभी-कभी हम सोचते है कि यदि लालाजी पाज होते तो वे कभी भी इस प्रथा को नही पनपने देते।
वास्तव मे लालाजी एक कट्टर वीर योद्धा थे। जिनके सामने श्रद्धा से अपने आप सर नमित हो जाता है।
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