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मेरे सामाजिक गुरु
मैं लाला तनसुखरायजी को सन १९३२-३३ से जानता था, परन्तु मुझे उनके साथ कार्य करने का अवसर १९४४ से हुआ। लाला दीपचन्दजी सम्पादक वर्धमान यादि के प्रयत्नो से दिल्ली मे स्थानीय अ० भा० दिगम्बर जैन परिपद की शाखा स्थापित हुई जिसमे मत्री पद का कार्य करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुया । तव से लालाजी से मेरा सम्पर्क दिनो दिन बढता गया ।
श्री भगतरामजैन बहादुरगढ़ रोड, दिल्ली
लाला भगतरामजी परिपद के प्रतिष्ठित कार्यकर्ताओ मे से है । बहुत अच्छे समाजसेवी और उत्तम आन्दोलन करने वाले है | महावीर जयन्ती के जलूस और परिपद के कार्यों में सदैव अग्रसर होकर सेवा के कार्यों मे अग्रसर रहते हैं। समाज को आपसे वडी प्राणाये है।
परिपद के मुजफ्फरनगर अधिवेशन पर लालाजी प्रधान मंत्री व मुझे मन्त्री चुने जाने के कारण सामाजिक कार्यों मे उनका मेरा हर समय का साथ होगया । वाद मे तो वह इतना बढ गया कि हर सामाजिक कार्य मे वह मुझे अपने साथ रखते थे ।
वह कार्यकर्ता की बडी कदर करते थे व उसकी हिम्मत बढाते रहते थे । उनमे प्रचार अपने ढंग से करते थे । दूसरो का
करने का बड़ा गुण था । जब भी कोई कार्य हाथ मे लेते थे, दखल उन्हे पसन्द नही होता था । अपने विचार के पक्के थे। उनके समय मे समाज मे कई आन्दोलन हुए । उन्होने वडी हिम्मत से उनका प्रचार किया। हर क्षेत्र में उनके कार्यों के कारण उन्हे प्रतिष्ठा प्राप्त हुई । उनका समस्त जीवन राष्ट्रीय व सामाजिक कार्यो मे अधिकतर
लगा ।
उनका स्वभाव गर्म होने पर भी थोड़ी देर मे ठीक हो जाता था। मेरे साथ अनेको अवसर प्राये कि वह विगडे परन्तु कुछ देर बाद वैसे के वैसे हो जाते थे । सुधारक होने पर भी धर्म मे पक्के थे। जैन धर्म की मान पर हर जगह लोहा लेने को तैयार रहते थे । उनके विषय मे क्या लिखू, समझ मे नही था रहा है। अनेको उदाहरण है जिनसे उनकी हिम्मत, कार्य करने की दृढता की झांकी प्राप्त हो सकती है । परन्तु में केवल एक का उलेख यहा करके अपनी श्रद्धाजलि अर्पित करता हू ।
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१९५० में जब परिषद का अधिवेशन दिल्ली में हुआ, उसमें आने वाले हरिजन मन्दिर प्रवेश के प्रस्ताव पर समाज मे वडा वादविवाद हुआ था। उसके पास होने के कुछ दिनो वाद मुझे तीन पत्र प्राप्त हुए जिनमे बडा बुरा-भला लिखने के साथ-साथ मारने तक की
(शेप पृष्ठ ८२ पर)