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एकता के स्तंभ
सूरजभान जैन "प्रेम"
प्रागरा
लालाजी की जीवन-यात्रा
मानव जीवन के दो पहलू है एक सामाजिक दूसरा धार्मिक । लालाजी ने अपने जीवन I मे दोनो भागो को अपनाया था। उन्होने सामाजिक और धार्मिक दोनो क्षेत्रो मे अपना जीवन व्यतीत किया । राष्ट्रीयता, परोपकार, सेवाभाव और सदाचार उनके जीवन के मुख्य अग थे । उन्होने देश सेवा को अपने जीवन मे उतारा और भगवान महावीर के दो अटल सिद्धान्त सत्य और अहिंसा को अपने जीवन मे अपनाया। बड़े वडे विद्वानो का मत है कि वह जीवन क्या जिसे कोई जान न सके । यो तो पशु भी अपना जीवन व्यतीत कर जाते हैं । और मनुष्य भी अपने परिवार के भरण पोषण करते-करते ससार चले जाते है। उन्हे कोई ज्ञान ही नही होपाता कि क आए और कब गए। ऐसे बिरले ही व्यक्ति होते 'देश सेवा मे रत रहते हुए धार्मिक ज्ञान उपार्जन कर अपना कल्याण कर जाते है । और अपनी स्मृति छोड़ जाते है । ऐसे बिरले व्यक्तियो मेलाला तनसुखरायजी का नाम भी आता है, जिन्होंने अपने जीवन का एक एक क्षण परोपकार और देश सेवा मे लगाया ।
समाज की एकता के लिए ग्र० भा० दि० जैन परिपद् मे आपने तन, मन, धन से पूरा सहयोग दिया । आज यह परिषद् का वृक्ष आपका सीचा हुआ ही है ।
लालाजी का जन्म सन् १८९९ मे सुलतान में हुआ । आपके पिता श्री जौहरीलालजी अग्रवाल जैन थे । सन् १९०८ में व्र० शीतलप्रसादजी मुलतान पवारे । वह उनकी सेवा करते रहे । वचपन से ही लालाजी को धार्मिक प्रवृत्ति और सामाजिक कार्यों मे अनुराग रहा ।
सन् १९१४ मे इनके पिता कुटुम्ब भटिंडा चले गए । उन्होंने सन् १९१८ में सरकारी रेलवे विभाग मे नौकरी की । सन् १६२१ मे गाधीजी के श्रसहयोग के कारण राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय सहयोग देने लगे और त्यागपत्र देकर नौकरी छोड दी। स्वदेशी वस्त्रो और वस्तु के प्रयोग का वृत्त ले लिया तथा सैकडो व्यक्यिो स्वदेशी वस्तुओ की प्रतिज्ञा कराई । खादी प्रचार, हिन्दी भाषा प्रचार समिति में जोरो से काम किया । सन् १६२४ मे आप अपने जन्म स्थान रोहतक मे प्रागए । सन् १९२६ मे पंजाब की क्रान्तिकारी सस्था नौजवान भारत सभा के सदस्य बने । १९३३ तक आपने असहयोग आन्दोलन मे जोरो से कार्य किया । जिससे सी० आई० डी० पुलिस भी २ साल तक पीड़ लगी रही और ८ मास का कारावास भी भोगना पड़ा । सन् ३१-३२ मे हरिजन सुधार का भी कार्य किया। इस बीच मे पंजाब कान्तीय काग्रेस कमेटी की कार्यकारणी के सदस्य चुने गए और काग्रेस ने श्रापको प्रतिनिधि चुन कर लाहौर अधिवेशन में भेजा । वैसे तो राष्ट्रीयता से जीवन भर प्रेम रहा और दीन दुखियो के प्रति करुणा भाव सदा ही उमडता रहा । सन् १९३३ मे रोहतक मे वाढ आई और आपने वाढ पडितो के लिए एक रिलीफ कमेटी बनाई ।
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