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________________ (७४) स्वसमरानन्द। प्राणहीन हो जाती हैं । केवल एक लोभ कषायके प्राण नहीं निकलते | वह अपनी जरी पंजरी लिये हुए स्वांस लिया करता है । शेष कषायोंके मरनेपर केवलसुक्ष्म लोमके जीवित रहते हुए यह वीर आत्मा सूक्ष्मसापराय नामकी दसवीं श्रेणीमें उपस्थित होता है। यहां पुरुषवेद संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोमको घटाकर केवल १७ नवीन कर्म-प्रकृतियोंकी सेना ही मोहकी फौजमें माती है; जबकि रणक्षेत्रमेंसे स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, संन्वलन कोध, मान, माया, ऐसी १ सेनाओंकी सत्ता ही निकल जाती है। केवल ६० कर्म प्रकृतियोंकी सेनाएं ही ६६ में से रह जाती हैं। जबकि मोहके पास उसके भंडारमें १०२ सेनाका ही सत्व रह जाता है ९ मी श्रेणीमें १३८ का था, उसमें से नित्नलिखित छत्तीस प्राण रहित हो जाती हैं । तिर्यग्गति १, तिर्यगत्यानुपूर्वी २, विकलत्रय ३, निद्रानिद्रा १, प्रचलाप्रचला १, स्त्यानगृद्धि १, उद्योत ?, आताप १, एकेन्द्रिय १, साधारण १, सूक्ष्म १, स्थावर १, प्रत्याख्यानावरणीकषाय ४, मप्रत्याख्यानावरणीकषाय ४, नोकषाय ९, संज्वलन कोध १, मान १, माया १, नरकगत्यानुपूर्वी १ ॥ इस तरह यह वीरात्मा मोहपर विनय पाता हुआ अपने महापराक्रमशाली तेजको धारे हुए और प्रथम शुक्लध्यानकी खड़गको तेज किये हुए अभेद रत्नत्रयमयी स्वसंवेदन ज्ञानद्वारा निन आत्माके शुद्ध परम पारणामिक स्वरूपमें लीन होता हुआ परसे उन्मुख होते हुए भी परका किञ्चित विचार न करके स्व स्वरूप अमृतमई जलसे भरे हुए समुद्र में गोते लगाता हुआ सिख सुखके समान परम अतीन्द्रिय स्वसमरानंदको अनुभव करता हुआ प्रमुदित हो रहा है।
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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