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(१०) स्विसमरानन्द । आवली प्रमाण और जघन्य १ समय प्रमाण बावना रहकर तुरत मिथ्यात्वकी भूमिकामें आनाता है। हा ! जो आनन्द इस निराकुल आत्माको थोड़ी ही देर पहले था वह सत्र अस्त हो जाता है और यह महा दुखी होकर विषयोंकी चाहकी दाहमें जड़ने लगता है और उनकी ही प्राप्तिके सोचमें तड़फड़ाने लगता है। यदि कोई विषय मिल जाता है तब अन्य विषयों की तृष्णामें विह्वल रहता है।
धन्य हैं वे प्राणी जिन्होंने मिथ्यात्वकी सेनाओंको सत्तासे ही नष्टभ्रष्ट करके भगा दिया है और जो क्षायिक सम्यक्तकी दृष्टिसे निर्भय हो स्वसमरानन्दका अनुभवकर तृप्त रहते हुए अचिन्त्य रहते हैं।
आनंदकंद, अविनाशी, परम निरंजनत्व मनन अभ्यासी आत्मा इस समय मिथ्यात्व भूमिकामें घिरा हुआ हुमा मोहरानाके प्रमल भटोंकी सेना द्वारा चारों ओरसे दुखी और व्याकुल हो रहा है | अभेद विवक्षासे उदय योग्य १२२ पतियों (स्पर्शादिमेंसे ४ लेकर १६ बाद दे तथा ५ बंधन, ५ संघ तको शरीरोंमें ही गर्मित कर १० बाद दे, १४८में से २६ जानेसे १२२ प्रकृति उदय योग्य होती हैं ।) की सेनामें सम्यक्पति, सत्यग्निपात्य, महारक शरीर, आहारक आंगोपांग और तीर्थंकर प्रकृति की सेना अपना बल नहीं दिखला रही है । बड़ी कठिनतासे किसी काल लब्धिक चश परोपकारी सद्गुरुद्वारा इस आत्माने निस अनादि मिथ्यात्वसे जाना पग छुड़ा लिया था, खेद है सीने फिर इसको दवा