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खसमरानन्द ।ख्यात् प्रदेशी, ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, सम्यक्त, चारित्र, स्वस्वं. रूप तन्मयत्व आदि अनेकानेक गुणोंका भण्डार परम रूपवान है । तेरी शक्ति अनन्त अपार है । जो तू अपने पदकी रुचि मात्र करे तो तेरा यह कारावास अन्तपनेको प्राप्त हो जावे। देस; प्यारे मित्र ! मोह और उसकी कुपुत्री कुमतिने तुझे ऐसा वावला बना दिया है, तेरी ज्ञान दृष्टिपर मोहनी धूल डाल दी है कि तू जहां कनक है वहां पीली मिट्टी देख रहा है। जहां अगर-बन है वहां तू बबूलवन कल्पना कर रहा है, जहां भचल अभिराम आनन्दधाम है वहां तू नर्कका मुकाम मान रहा है । जहां विपश्चा समुद्र है वहां तू अमृतसागर जान रहा है । जहाँ अमृतसागर है वहां तू विषधर कल्पना कर रहा है। नो तुझे अनंत कालतक मुंख देनेवाला है उसे तू दुःखदाई नान रहा है । विषयवासनामें पड़कर आज तक किसी जीवने तृप्तता नहीं पाई । हे मित्र ! मेरी ओर देख " ये वचन क्या थे, मानो प्यासके लिये जलरूप थे, भूखेके लिये अन्नरूप थे। सुनते ही ऊपर देखता है परन्तु फिर भी वही आश्चर्य की बात है क्योंकि उसकी समझमें उस विद्याधरका कथन फिर भी नहीं आया। परन्तु इसकी रुचि देखकर वह विद्याधर समझ गया कि इसके परिणामोंने अपने हितकी तरफ ध्यान दिया है और फिर उसको कहता है, " हे मित्र! तू कमर कप्स, मोहसे लह, भय न कर, हम तेरी हर प्रकारसे सहायता करनेको उद्यत हैं । " अब यह समझता है और कहता है, "हे मित्र ! तुम्हारे वचन मुझे बहुत ही इष्ट मालूम पड़ते हैं । कृपाकर ऐसे ही बचनोंका समागम मुझे नित्य प्रदान