SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ राजपूताने के जैन-वीर पराजित किया इस बात का उल्लेख एक दूसरी प्रशस्ति में भी किया हुआ है। यथा- कीर्त्या च वादेन जितो महीपान द्विधा द्विजो पै रिह चित्रकूटे | जितत्रिकूटे नृपतेः समक्ष महोभिरहयान तुरङ्गः संख्यैः ॥ कर्माशाह मंत्री होने से पूर्व कपड़े का व्यापार करता था | बंगाल और चीन वगैरह देशों से करोड़ों रुपयों का माल उस की दुकान पर जाता जाता था । इस व्यापार में उसने अपरिमित रूप में द्रव्य की प्राप्ति की थीः । शाहजादा बहादुरखान ने भी कर्माशाह की दुकानः से बहुतसा कपड़ा खरीदा था । जो पीछे से बहादुर शाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ । शाहजादे की अवस्था में जव, वह उधर आया तो आवश्यकता होने पर कर्माशाह ने एक लाख रुपये बिना किसी शर्त के दिये । इसी उपकार के बदले में उसने जब बादशाह हुआ शत्रुरंजय के उद्धार करने की तथा मंदिर बनाने की इजाजत दी । कर्माशाह ने करोड़ों रुपयें. इसमें खर्च किये जिसका वर्णन प्रशस्ति में मिलता है। शिलालेखों एवं प्रशस्तियों में कर्माशाह का नाम कर्मसिंह भी मिलता है । इसके पूर्वजों के नाम भी सिंहान्तक हैं। लिखने का अभिप्राय यह है कि जव से क्षत्रियों के नाम सिंहान्तक इतिहास में पाये जाते हैं तब ही से जैन मंत्रियों (महाजुनों ) के भी मिलते हैं ।... पं० गौरीशंकरजी ने कर्मसिंह को महाराणा रत्नसिंह का. मंत्री लिखा है । वह समय लड़ाइयों का था अतएव वह अवश्य, वीर .
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy