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________________ ६२ राजपूताने के जैनवीर पूर्व था। उसका एक एक अणु इस प्राचीन पद्य की साक्षी दे . रहा है कि _ 'जो हद राखै धर्म को, तिहिं राखे कार' राजपूताने के आधुनिक प्रसिद्ध इतिहास-वेता श्री० ओमाजी . लिखते हैं: "इस छोटे से राज्य ने जितने वर्षों तक उस समय के सब से अधिक सम्पन्न साम्राज्य का वीरता पूर्वक मुजाविला किया, वैसे उदाहरण सम्पूर्ण संसार के इतिहास में बहुत कम मिलेंगे। __ केवल राजपताने की रियासतों के ही नहीं, परन्तु संसार के अन्य राज्यों के राजवंशों से भी उदयपुर का राजवंश: अधिक प्राचीन है। उदयपर का राजवंश वि० सं० ६२५ (ई० स०५६८) के आसपास से लगाकर आज तक समय के अनेक हेर फेर सहते हुये भी उसी.प्रदेश.पर राज्य करता. चला आ रहा है । १३५० से. भी अधिक वर्ष तक एक ही प्रदेश पर राज्य करने वाला..संसार + उकाबी शान से झपटे थे, जो बे वालों पर निकले. I. . सितारे शाम के खूने शक में डूवः कर निकले ।। . हुये मदपून: दरिया: जेर, : दरिया तैरने वाले । तमांचे मौज.के खाते थे.जो.बनकर गुहर निकले ॥. गुवारे रहगुज़र हैं, कीमया पर नाज़ था जिनको ।. जवीने खाक पर रखते थे, जो अक्सीर गर निकले। हमारा नमरोकासिद पयामें जिन्दगी लाया । "खवर देतीथीं जिनको बिजलियाँवह वेखवर निकले। . . . . ... ."-इकबाल": .
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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