SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेवाड़ - परिचय ५७ से लगाकर सोमेश्वर तक सांभर और अजमेर के चौहान राजाओं की वंशावली तथा उनमें से किसी किसी का कुछ विवरण भी दिया है । इस लेख में दी हुई चौहानों को वंशावली बहुत शुद्ध है क्योंकि इसमें खुदे हुए नाम शेखावाटी के हर्षनाथ के मन्दिर में लगी हुई वि० सं० १०३० की चौहान राजा सिंहराज के पुत्र विप्रहराज के समय की प्रशस्ति, किनसरिया ( जोधपुर राज्य में ) से मिले हुए सांभर के चौहान राजा दुर्लभराज के समय के वि० सं० १०५६ के शिलालेख तथा 'पृथ्वीराजविजय' महाकाव्य में मिलने वाले नामों से ठीक मिल जाते हैं। उक्त लेख में लोलाक के पूर्व पुरुषों का विस्तृत वर्णन और स्थान-स्थान पर बनवाये हुए उनके मन्दिरादि का उल्लेख है । अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज ( दूसरे) ने मोराकुरीगाँव और सोमेश्वर ने रेवणागाँव पार्श्वनाथ के उक्त मन्दिर के लिये भेट किया था । " उन्नतिशिखरपुराण" भी लोलाक ने उसी संवत् में यहाँ खुदवाया था और इस समय इस पुराण की कोई लिखित प्रति कहीं विद्यमान नहीं है । वीजोल्यां के राव कृष्णसिंह ने इन दोनों चट्टानों पर पक्के मकान बनवा कर उनकी रक्षा का प्रशंसनीय: कार्य किया है। ... ( पृ० ३६२-६४ ) देलवाड़ा के जैनमन्दिर · एकलिंगजी चार मील उत्तर में देलवाड़ा (देवकुल पाटंक) गाँव वहाँ के झाला सरदार की जागीर का मुख्य स्थान है । यहाँ पहले बहुत से श्वेताम्बर जैनमन्दिर थे; उनमें से तीन अब तक विद्यमान हैं, जिनको वसही ( वसति ) कहते हैं । इनमें से एंक
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy