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________________ ५२. राजपूतानें के जैनवीर के विशाल परिकर में इन्द्रादि देवता बने हैं और दोनों पार्श्व परं. दो नग्न काउंसगिये (कायोत्सर्ग स्थिति वाले - पुरुष ) खड़े हुये हैं ।' मूर्ति के चरणों के नीचे छोटी छोटी ९ मूर्तियाँ हैं, जिनको लोग 'नवग्रह' या 'नवनाथ' बतलाते हैं । नवमहों के नीचे १६ स्वप्ने खुदे हुये हैं, जिनके नीचे के भाग में हाथी, सिंह, देवी आदि की मूर्तियाँ और उनके नीचे दो बैलों के बीच में देवी की एक मूर्ति बनी हुई है । निजमन्दिर की बाहरी पार्श्व के उत्तर और दक्षिण के ताक तथा देव कुलिकाओं के पृष्ठ भागों में भी नग्न मूर्तियाँ विद्यमान हैं । . मूलसंघ के बलात्कार गरणवाले कमलेश्वर गोत्री गांधी विजयचंद्र ने वि० सं० १८८३ ( ई० स०० १८०६) में इस मन्दिर के चौतरफ एक पक्का कोट बनवाया । वि०स०१८८९ (इ०स० १८३२) में जैसलमेर ( उस समय उदयपुर के ) निवासी ओसवाल जाति की वृद्ध शाखावाले बाफण गोत्री सेठ गुमानचन्द 'बहादुरमल के कुटुम्बियों ने प्रथम द्वार पर का नकारखाना बनवाकर वर्तमान ध्वजादंड चढ़ाया ।. इस मन्दिर के खेला मंडप में तीर्थकरों की २२: और देवकुः लिकाओं में ५४ मूर्तियाँ विराजमान हैं । देवकुलिकाओं में वि०सं० १७५६ की बनी हुई विजयसागर सूरि की मूर्ति भी है और पश्चिम की देवकुलिकाओं में से एक में अनुमान ६ फुट ऊँचा ठोस पत्थर का एक मन्दिर सा वना हुआ है, जिस पर तीर्थंकरों की 4 : बहुतसी छोटी-छोटी मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। इसको लोग गिरनार i
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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