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________________ ३२२ राजपूताने के जैन वीर की। उस मन्दिर के कार्य की समाप्ति पर विमल ने इतना छान् किया कि, जैन लोग अव तक 'विमलश्री सुप्रभातं' कहकर आशीर्वाद देते हैं । इस कथा में कहाँ तक ऐतिहासिक सत्यता है इसको पाठक स्वयं विचार सकते हैं। इसपर विवाद करना व्यर्थ है । इस मन्दिर में एक लेख वि० सं० १३५० ( ई० स० १२९४ ) माघ सुदि १ का सोलंकी राजा सारंगदेव के समय का भी लगा हुआ है । इस मन्दिर की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। इससे इस समय की शिल्प निपुणता का भी बोध होता है। इतिहास लेखक कर्नल टॉड साहव ने इस मन्दिर के विषय में लिखा है: sparkeaton "हिन्दुस्तान भर में यह मन्दिर सर्वोत्तम है। सिवाय ताजमहल के कोई भी स्थान इसकी बराबरी नहीं कर सकता ।" इस मन्दिर के पास ही दूसरा लूणवसही नामक नेमिनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है । इसको वस्तुपाल, तेजपाल का मन्दिर कहते हैं। यह मन्दिर वस्तुपाल के छोटे भाई तेजपाल का बनवाया हुआ है। जिस प्रकार ताजमहल अपनी स्त्री की यादगार में शाहजहाँ बाद - शाह ने बनवाया था, उसी प्रकार तेजपाल ने अपनी स्त्री अनुपमदेवी और पुत्र लूणसिंह का नाम चिरस्थायी करने और उनके कल्याण के निमित्त यह नेमिनाथ का मन्दिर बनवाया था। इसी मन्दिर में वि० सं० १२८७ (ई० स० १२३०) फाल्गुण बंदि ३
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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