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________________ ३२० राजपूताने के जैन वीर श्री रत्नमन्दिरमणि की बनाई हुई उपदेशतरङ्गिणी में; जो विक्रम संवत् की सोलवीं शताब्दी में बनाई गई थी। इस मन्दिर के बनवाने की कथा इस प्रकार लिखी है: गुजरात के राजा भीम को दुश्मनों द्वारा भड़काया हुआ देखकर उसका सेनापति विमल वहाँ से पाँचसौ सवार और पाँच करोड़ सोने से लदे ऊँट लेकर चंद्रावती में चला गया। उसके इस प्रकार आगमन से चंद्रावती राजा धारावर्ष भयभीत होकर सिन्धु देश की तरफ भाग गया । विमल ने उसके स्थान पर पहुँच उसे ' अपना निवास नियत किया । तथा वहाँ के मांडलिकों (जागीरदारों) ने विमल को अपना राजा बना लिया । तदनन्तर उसने अपनी सेना द्वारा सांभर, मेवाड़, जालोर, आदि नगरों के सौ राजाओं को जीता । एक समय सोते हुए १२ सुलतानों को उसने ना घेव । तथा उनको भी अपने आधीन करलिया। उसके प्रत्रल प्रताप से डरकर स्वयं भीमने अपने मंत्री द्वारा विमल के पास एक करोड़ रुपये नज़र के तौर पर भेजे। परन्तु विमल ने अपने स्वामी और जन्मभूमि का विचार करके उस मंत्री को बहुत कुछ आदर सत्कार सहित पीछा भेज दिया। एक दिन श्री धर्मघोषसूरि के मुख से विमल ने एक शास्त्र वाक्य को सुना, इससे अपनी संग्राम में की हुई हिंसा पर उसको बड़ा दुःख हुआ । तथा श्रीधर्मघोषसूरि से उसने इसके प्रायश्चित्त की व्यवस्था करने की प्रार्थना की। उक्त सूरि ने उसे देवमन्दिर बनवाने आदि पुण्य कर्म करने की आज्ञा
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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