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________________ २८ राजपूतानेके.जैन चीर :मैंने पास तक नहीं फटकने दिया है जो भी कुछ लिखा है सत्य को लेकर लिखा है । संभव है मेरा यह प्रयास असफल रहा हो, फिर भी मैं इतना अवश्य कहूँगा कि. .. मैंने लिखा है इमे खुने जिगर से अपने । ___ इसके संकलन करने में जो दुर्दिन देखने पड़े हैं, भगवान करे मेरे सिवा वह दिन कोई और न देखे । दिल एक प्रकारसे टूट सा गया है अपने वचनानुसार ज्यों त्यों करके आज यह कृति. मुझे पाठकों के कर कमलों में भेट करते हुए हर्ष होता है। यद्यपि इसमें अनेक त्रुटियाँ हैं, मैं इसे जैसा चाहता था, वैसा न लिख सका । यदि विद्वान् पाठकों ने पुस्तक में रही हुई त्रुटियों की ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया और इसके लिये साहित्य सम्बन्धी साधन जुटाने की उदारता दिखाई तो संभवतया उनके सुधार का प्रयत्न किया जायगा। अन्त में भावना है कि: हर दर्दमन्द दिल को रोना मेरा रुलादे। बेहोश जो पड़े हैं शायद उन्हें जगादे ॥ "इकबाल" राष्ट्रीय औषधालय गाली वरना, सदर देहली। . दास प्र.प्र. गोयलीय . २४-२-३३. कैफियत ऐसी है नाकामी की इस तसवीर में। जो उतर सकती नहीं आईनये तहरीर में ।।.. :- "इकवाल".
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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