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________________ मंडन का वीर वंश ३०७ है । वि० सं० १५०४ ( ई० स० १४४७) की लिखी मंडन के ग्रन्थों की प्रतियों पाटण के भंडार में वर्तमान हैं। इससे प्रतीत होता है कि ईस्वी सन् १९४७ के पूर्व वह ये सब फ्रन्थ बना चका था । मुनि जिनविजयजी के मतानुसार ये प्रतियाँ मंडन ही की लिखवाई हुई हैं । वि० सं० १५०३ में डन ने भगवती सूत्र लिखवाया था, यह ऊपर दर्शन हो का है। इससे ष्ट है कि मंडन वि० सं० (५०४ (ई० सं० १४४७) तक वर्तमान था । महेश्वर ने काव्यमनोहर के सर्ग ७ श्रो० २० में लिखा है कि “संघपति मंगण के ये पुत्र विजयी हैं" इस वर्तमान प्रयोग से विदित होता है कि काव्यमनोहर के बनने के समय भ.म. के हों पुत्र वर्तमान थे । मंडन के ग्रन्थ पाटण (गुजरात) की हेमचंद्राचार्य सभा ने महेश्वरकृत काव्यमनोहर और मंडनवृत (१) कादंबरीदर्पण (२) चंपू मंडन (३) चंद्रविजय और (४) कार मंडन ये पौधों प्रन्थ एक जिल्द में और (५) काव्य मंडन तथा (६) श्रृंगार मंडन दूसरी जिल्द में प्रकाशित किये हैं । प्रथम जिल्द की भूमिका से विदित होता है कि इन उपरोक्त ग्रन्थों के सिवाय (७) संगीत मंडन और (८) उपसर्ग मंडन नाम के दो प्रन्थों की प्रतियाँ भी उक्त सभा के पास । उक्त सभा ने ये प्रतियाँ पाटण के बाड़ी पार्श्वनाथजी के मंदिर से प्राप्त की हैं।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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