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________________ मंडन का वीर वंश सिंहासन पर बैठा और ई० स० १४३२ (वि०सं० १४८९) में इसका देहांत हुआ । यह ठीक मालूम नहीं होता कि झमरण किस समय से किस समय तक हुशंगगोरी का मंत्री रहा, परंतु यह अवश्य कहना होगा कि वह अधिक समय तक नहीं रहा, क्योंकि इसी अल्पखों के राजत्वकाल में झमण का पुत्र बाहड और उसका पुत्र मंडन मंत्री बन चुके थे। ६. चाहड़: झमाड़ के छः पत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा चाहड़ था। चाहड़ने संय के साथ जीरापल्ली (श्राधनिक जीरावला जो आव के समीप है) की यात्रा की और प्रवुद (आव) पर्वत की भी यात्रा की । संघमें जितने मनुष्य थे, सबों को द्रव्य, वन और घोड़े दिये और संघ.. पति की पदवी प्राप्त की। तीर्थस्थानों में बहुतसा धन व्यय किया। इसके दो पुत्र थे, जिन में बड़े का नाम चंद्र और छोटे का नाम खेमराज था। १०. बाहड़:-- __ मण के दूसरे पत्र का नाम थाहड़ था। इसने भी संघपति बनकर रैवतक पर्वत (गिरनार) की यात्रा की, संघी लोगों को द्रव्य, वन और घोड़े दिए । इसके भी दो पुत्र थे। घड़े का नाम समुद्र(समघर) और छोटे का नाम मंडन था। यही मंडन हमारे चरित्रनायक मंत्री मंडन हैं। झमण का तीसरा पुत्र देहड़ था। इसने भी संघपति बनकर
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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