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________________ मंडन का वीर वंश २९५ कथा, जिसका उपनाम गाजीवेग भी था। इसने ईस्वीसन् १३२१ में खिलजी वंशीय मलिकलुनू से, जिसका उपनाम नसीरुद्दीन भी था, राज्य छीना और ४ वर्ष तक राज्य किया था । ७. बीका:--- दुसा का पुत्र बीका हुआ, जो वीतराग का परमभक्त था । पाके वर्णन में पाव्य मनोहर में दो श्लोक ऐसे लिखे हैं, जिन में प्रशुद्धि हो जाने के कारण उनका अर्थ स्पष्ट प्रतीत नहीं होता, तथापि उनका अभिप्राय कुछ ऐसा मालूम होता कि "धीका ने शक्तिशाह को जो पादलक्षादि ( सपादलक्ष पर्वत, साँभर के आसपास का प्रदेश) को उपभोग कर रहा था। सात गजानों के साथ फ़ैद कर लिया और उसका अधिकार छान लिया । पातशाह ( गयासुद्दीन तुगलक ) ने उसके इस कार्य को उचित समझ, उसे दान मान आदि से खुश किया। बीफा ने भी बादशाह से बड़ा भारी मान पाने से प्रसन्न हो, उस प्रदेश पर गाजीक (गयासुद्दीन) का अधिकार स्थापित कर दिया । यह शक्तिशाह किसी मुसलमान बादशाह का नाम प्रतीत होता है। जिसे संस्कृत में रूपांतर दे दिया गया है। एल्फिंग्टन ने लिखा है कि "गुजरात के बादशाह श्रमदशाह ने ईडर, जालौर और खानदेश पर आक्रमण किए थे. एक अवसर पर वह मारवाड़ के उत्तर में अवस्थित नागौर तक वह ध्याया था, जहाँ उसका चचा देहली के सैयद खिजरखाँ के विरुद्ध उपद्रव कर रहा था" । संभव है कि "श. कशाह" अहमदशाह या उसके किसी सेनापति का नामांतर हो, जिसने सपा
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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