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________________ राजपूताने के जैन-वीर दीवान अमरचन्द सुराना । ": 1 अमरचन्द बीकानेर के प्रतिष्ठित ओसवाल जाति के एक . जैन थे । महाराज सूरतसिंह के समय में जिनका राज्यकाल सन् १७८७ से १८२८ तक रहा है, इन्होंने बहुत प्रसिद्धि पाई । सन् १८०५ ईस्वी में अमरचन्दजी भाटियों के खान जान्ताखाँ से युद्ध करने के लिए भेजे गये । इन्होंने खान पर आक्रमण किया. और उसकी राजधानी भटनेर को घेर लिया। पाँच मास तक क़िले की रक्षा करने के बाद जाब्ताखाँ ने क़िले को छोड़ दिया और उसको अपने साथियों के साथ रैना जाने की आज्ञा मिल गई । इस वीरता के कार्य के उपलक्ष्य में राजा ने अमरचन्दजी को दीवान पद पर नियत कर दिया ।. २७० सन् १८१५ ईस्वी में अमरचन्दजी सेनापति बनाकर चूरू के ठाकुर शिवसिंह के साथ युद्ध करने को भेज दिये गये । अमरचन्द ने शहर को घेर लिया और शत्रु का श्राना जाना रोक दिया । जब ठाकुर साहब अधिक काल तक न ठहर सके, तो उन्होंने अपमान की अपेक्षा मृत्यु को उचित समझा और आत्मघात कर लिया । अमरचन्दजी की वीरता से प्रसन्न होकर महाराजा साहब ने उसको राव की पदवी, एक खिलअत तथा सवारी के लिए एक हाथी प्रदान किया ।. - *जैन- हितैषी भाग ११ वाँ अंक १०-११ से. · immin
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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