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________________ २६८. राजपूताने के जैन वीर और राज परिवारों की स्त्रियाँ वहाँ जाकर मनमानी सामग्री मोल लिया करती थीं । पाखण्डी अकवर भी भेष बदले हुये वहाँ जाता था और किसी न किसी सुन्दर युवती को अपने षड्यंत्र में फांस लिया करता था । एक समय पृथ्वीराज की पत्नी किरन भी उक्त मीना बाजार की सैर करने गई । अकबर ने इसे धोखे से भुलावा देकर महलों में बुला लिया । किरन अकवर के पैशाचिक भाव को ताड़ गई, लपक कर उखेड़ में बैठ वादशाह को दे मारा और कमर से एक छुरा निकाल बादशाह की छाती पर बैठ सिंहनी की तरह गरज कर बोली "ईश्वर के नाम से शपथ करके कह, कि और किसी अबला के शील नष्ट करने की इच्छा नहीं करूँगा । कह शपथ कर, नहीं तो यह तीक्ष्ण छुरी अभी तेरे हृदय के रुधिर से स्नान करेगी ।" कायर अकवर प्राणों की भिक्षा मांगने लगा, उसने तत्काल वीर बाला की आज्ञा का पालन किया । वीर नारी किरन ने भी अकबर को जीवन दान दिया । इसी घटना से घायल सिंहनी की तरह जब किरन अपने मकान पर आई, तब वहां पृथ्वीराज को कविता करते देख, वीर बाला का क्रोधरूपी समुद्र उमड़ आया और उसी आवेश में अपने पति को उसके क्षत्रियोचित कर्त्तव्य का ज्ञान कराने के लिये झूठ मूठ अपनी ननद का नाम ले दिया ! शिशोदिया राज-कन्याओं ने हमेशा धर्म के लिये जान दी है। उन्होंने कभी अपने उज्वल कुल में कलङ्क नहीं लगने दिया, यही कारण है कि उस समय जिसको शिशोदिया राजकुमारी ब्याही जाती थी, वह मारे गर्व के फूल कठता ::
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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