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________________ चच्छावतों का उत्थान और पतन भाग गया है, तो उसने क्रोध में आकर प्रतिज्ञा और शपथ की कि, मैं उस.से बदला लूंगा, परन्तु आगे चल कर यह बात मालूम होगी कि उसके विछोह से उसे कितना दुःख हुा । जव करमचंद दिल्ली में था। उस समय भटनेर में एक अद्भुत घटना होगई, जिस से उस को रायसिंह से बदला लेने के लिए अच्छा मौका हाथ लग गया; परन्तु हम इस को निश्चय रूप से नहीं कह सकते कि, आया उसने इस अवसर से लाभ उठाया या नहीं । सन् १५९७ ईस्वी में जब रायसिंह भटनेर में ठहरा हुआ था, तववहाँ पर सम्राद् का श्वशुर नासीरखाँ आगया । राजा ने तेजा वागौर को मेहमान की आवभगत और खातिरदारी करने के लिए नियुक्त किया। तेजा ने नासोरखाँ का स्वागत बिलकुल नवीन रीति से किया। जव खाँसाहब धीरे धीरे चहलकदमी कर रहे थे, उस समय तेजा ने अपने को पागल बना लिया और खाँसाहब पर जूतों से प्रहार करना शुरू कर दिया। खाँसाहव उसी समय दिल्ली को लौट गया और वहाँ जाकर उसने इस दुष्टता की सम्राट् से शिकायत की। सम्राट्ने राजा से वासी को माँगा परन्तु राजाने उसके हुक्मकी कुछ भी परवाह नहीं की। इससे सम्राट् को बड़ा क्रोध आया और उसने रायसिंह से भटनेर का राज्य छीनकर उसके लड़के दलपतसिंह को वहाँ का राजा बना दिया । हम निश्चय रूप से नहीं कह सकते कि आया करमचन्द ने दरवार में खाँसाहब का पक्ष लिया था या नहीं; परन्तु रायसिंह को इस बात का पूर्ण विश्वास हो गयाथा, कि यह करमचन्द की ही कार्यवाही है । पहिले ही राजा और मंत्री के बीच में
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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