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बच्छावतों का उत्थान और पतन २४९ जोत लिया। यही उस ने मंडौर छोड़ने के तीस वर्ष बाद अर्थात् सन् १४८८ ई० में अपनी राजधानी बीकानेर की नींव डाली और यहीं पर वह अपने नये जीते हये देशों का स्वतंत्र राजा वनकर रहने लगा। बच्छराज भी अपने कुटुम्बसहित इसी जगह रहने लगा और अपने स्वामी की भांति उस ने भी वच्छसार नाम का एक गाँव वसाया । बच्छराज बड़ा ही प्रेमी और धर्मात्मा पुरुप था । उस ने जैनधर्म की प्रभावनाके लिये बहुत कुछ उद्योग किया । उसने शत्रुजय की यात्रा की और अंत में पूर्ण वयस्क और सर्वमान्य होकर उसने देवलोक को गमन किया।
"बच्छराज मंत्री के करमसी, वरसिंह, रत्ती, और नरसिंह नामक चार पुत्र हुये और बच्छराजके छोटे भाई देवराज के दस, तेजा और भूण नामक तीन पुत्र हुये । १०. कामसिंहः
राव श्री लूणकरणजी महाराज ने बच्छावत करमसिंहजी को अपना मंत्री बनाया। करमसिंह ने अपने नाम से करमसोसर नामक ग्राम बसाया । विक्रम सं० १५७०में बीकानेर नगर में नेमिनाथ स्वामी का एक बड़ा मन्दिर बनवायाथा जो कि धर्मस्तम्भरूप अभी तक मौजूद है। इसके सिवाय इन्होंने तीर्थ यात्रा के लिये संघ निकाला तथा शत्रुजय, गिरनार और आबू आदि तीर्थों की यात्रा की। ११. वरसिंहः
राव लूणकरणजी के वाद राव जैतसीजी राज्यासीन हुये,