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________________ राजपूताने के जैन-चीर "जहाँ राजनीति नहीं, वहाँ इतिहास का क्या ज़िक्र ?" वे सचमुच ही धान के खेत में बैंगन ढूंडने जाते हैं और वहाँ बैंगन न पाकर धान की गिनती अन्न में ही नहीं करते । सब खेतों में एक ही चीज़ नहीं होती, यह समझकर जो लोग स्थान के अनुसार उपयुक्त खेत से उपयुक्त अन्न की आशा करते हैं, वे ही समझदार समझे जाते हैं।" - "यह सर्वश्रा ठीक है. कि आज कल. इतिहास का जो अर्थ किया जाता है (अर्थात् दूसरों के साथ मुकाविला तथा संग्रामों का वर्णन आदि) उस अर्थ में भारतवर्ष का इतिहास नहीं पाया जाता। प्राचीन काल में आर्यावर्त कभी इस प्रकार का देश. न था, जो दूसरों से युद्ध करके अपनी उन्नति करता। भारतीयों की उन्नति की अपनी विशेष रेखा थी। यह निश्चय करने के पूर्व कि भारतवर्ष का कोई इतिहास है या नहीं,हमें यह जानना चाहिये कि भारतवर्ष के इतिहास की कौनसी रेखा है ? उस रेखा का निश्चय करके उस के अनुसार इतिहास लिखा जा सकता है "+l.. - भारतवासी सदा से अध्यात्म-प्रेमी रहे हैं, यही कारण है कि उनके सम्बन्ध में मार-काट, खून-खराबे का वर्णन नहीं मिलता। उन्होंने इस रक्तरंजित पृष्ट के लिखने में आवश्यकता से अधिक उपेक्षा रक्खी है। भारतमें युद्ध न हुए हों, अथवा भारतवासी इस दंगका इतिहास लिखना ही नहीं जानते थे। यह बात नहीं। भारत ___ स्वदेश पृष्ट ३३ । .. .. . " + भारतवर्ष का इतिहास पृ. २.०० Pra
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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