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________________ जोधपुर- राजवंश के जैन-वीर २१७ २०. मेहता नत्रमलजी : . ( नं० १९ ज्ञानमलजी के पुत्र) इन्होंने संवत् १८६१ में सिरोही फ़तह की और अल्पावस्था में ही इनका देहान्त होगया" । नोट:- इस मोहरणोत ओसवाल वंश में अनेक प्रतिष्ठित नर-रत्न हुये हैं । जो राज्य के प्रारम्भ से ही वंशपरम्परागत दीवान पद पर प्रतिष्ठित होते रहे हैं। मेहता सरदार सिंह जी (मोहनजी की २८ वीं पीढ़ी में उत्पन्न) अपने जीवन के अन्त समय तक अर्थात् आपाढ़ सुदी ४ संवत् १९५८ तक दीवानगिरी का कार्य करते रहे, उनके इस मिती को स्वर्गासीन होने पर जोधपुर राज्य में यह चौहदा ही तोड़ दिया गया । इस वंश का विस्तृत विवरण "रायबहादुर मेहता विजयसिंहजी के जीवनचरित्र" में मिलता है । इसी पुस्तक से उक्त अवतरण संकलन किये गये हैं । उक्त "जीवनचरित्र" की पुस्तक से प्रकट होता है कि अब इस वंश में जैनधर्म की मान्यता नहीं रही है। अतः इस वंश में कब तक जैनधर्म की प्रतिष्ठा रही, यह उक्त पुस्तक के लेखक मेहता किशनसिंहजी (मोहनजी की २९वीं पीढ़ी में उत्पन्न) से दर्याफ्त करने पर, उन्होंने अपने ता० १ जनवरी सन् ३३ के पत्र में लिखा था कि, "हमारे वंश में श्रीचैनसिंहजी तक तो जैनधर्म रहा जैसा कि 'जीवन चरित्र' की पुस्तक से प्रकट होता है । बाद में वैष्णवधर्म अंगीकार कर लिया । लेकिन जैनधर्म पर हमारी पूर्ण श्रद्धा है ।" अतः प्रस्तुत पुस्तक में उक्त वंश का परिचय मेहता चैनसिंह जी (मोहनजी की २५ वीं पीढ़ी में उत्पन्न) के समय तक (संवत्.
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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