SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ के जैन राजा १८९ और उसको धनेश्वर गच्छ के समर्पण करना लिखा है। यह ककक, नाहडराव इस नाम से प्रसिद्ध नागभट का वंशज था,जिस का समय सातवीं शताब्दी होना चाहिये । कक्कुक के शिलालेख में संवत्सर और जिनचैत्य विषयक ये गाथा है: "वरिससएसु अणवसुं अट्ठारहसमग्गलेसु चेत्तम्मि । णवखत्ते वितुहत्थे बुहबारे धवलवीआए ॥ [१६] " तेश सिरिकवकुएणं जिणस्स देवस्स दुरिअणिदलणं । कारविअचलमिमंभवणं भत्तीए सुहजणयं ।। [२२]" अष्पिप्रमेयं भवणं सिद्धस्स धणेसरस्स गच्छमि | " भावार्थ:-विक्रम संवत् ९१८ (ई०सन् ८६१) के चैत्र सुदी द्वितीया बुधवार को हरतनक्षत्र में जिनराज़ का यह कल्याणकारी दृढ़ मन्दिर श्री कछुक महाराज ने भक्तिभाव से करवाया, जिस से पाप का नाश हो। यह शिलालेख प्रतीहार (पडिहार ककुक ने अपनी कीर्ति चिरस्थायनी रहने के लिये जिनराज के मन्दिर में लगवाया था। इसी ककक महराज का दूसरा शिलालेख उसी संवत् का उसी स्थान + " वर्षशतेषु च नवसु अष्टादशसमर्ग लेषु चैत्रे । नक्षत्रे विधुहस्ते बुधवारे धवल द्वितीयायाम् ।। तेनश्रीकक्कुकेन जिनस्य देवस्य दुरितनिर्दलनम्। कारापितमचलमिदं भवनं भक्त्या शुभजनकम्। अर्पितमेतद्भवनं सिद्धस्य धनेश्वरस्य गच्छे । wrwww.rrmu..r.mmx. .. .....
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy