SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६ • राजपूताने के जैन-चीर १०. मोट (सं०९ का पत्र ) इसने राज्य-सुख भोगने के पीछे गंगा में मुक्ति पाई। ११. भिल्लादित्य (सं० १० का पुत्र ) इसने युवावस्था में राज्य किया, फिर अपने पत्र को राज्य-भार सौंप कर वह गंगा-द्वार (हरिद्वार) को चला गया जहाँ १८ वर्ष रहा और अन्त में उसने अनशन व्रत से शरीर छोड़ा। १२. काय (सं० ११ का पुत्र) इसने मुग्दगिरि (मुंगेर, विहार में ) में गोंड़ों के साथ की लड़ाई में यश पाया । वह न्याकरण, ज्योतिष, तर्क (न्याय) और सर्व भाषाओं के कवित्व में निपुण था। उस . की भट्टि (भाटी) वंश की महारानी पद्मिनी से वाउक और दूसरी राणी दुर्लभदेवी से ककुक का जन्म हुआ। इसका उत्तराधिकारी वाउक हुआ । कक्क रघुवंशी प्रतिहार राजा वत्सराज का सामंत होना चाहिये, क्योंकि गौड़ों के साथ की लड़ाई में उसके यश पाने के उल्लेख से यही पाया जाता है कि जब वत्सराज ने । गौड़ देश के राजा को परास्त कर उसकी राज्यलक्ष्मी और दो श्वेत छन छीने, उस समय कक उसका सामन्त होने से उसके साथ लड़ने को गया।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy