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________________ १८४ राजपूताने के जैन-चीर उत्पन्न हुये वे ब्राह्मण प्रतिहार कहलाये और क्षत्रिय वर्ण की रानी भद्रा से जो पत्र जन्मे वे मद्य पीने वाले हुये। इस प्रकार मंडोर के प्रतिहारों के उन तीनों शिलालेखों से हरिश्चन्द्र का ब्राह्मण एवं किसी राजाका प्रतिहार होना पाया जाता है। उसकी दूसरी रानी भद्रा को राज्ञी लिखा है, जिससे संभव है कि हरिश्चन्द्र के पास जागीर भी हो। उसकी ब्राह्मण वंश की स्त्री के पुत्र ब्राह्मण प्रतिहार कहलाये। जोधपुर राज्य में अब तक प्रतिहार ब्राह्मण हैं, जो उसी हरिश्चन्द्र प्रतिहार के वंशज होने चाहिये। उसकी चत्रिय वर्ण वाली स्त्री भद्रा के पुत्रों की गणना उस समय की प्रथा के अनुसार मद्य पीने वालों अर्थात् क्षत्रियों में हुई । मंडोर के प्रतिहारों की नामावली उनके उपयुक्त शिलालेखों में नीचे लिखे अनुसार मिलती हैं:१. हरिश्चन्द्र (रोहिल्लद्धि) ESSETTE _ प्रारम्भ में किसी राजा का प्रतिहार था। उसकी राणी भद्रा से, जो क्षत्रिय वंश की थीं, चार पुत्र भोगभट, कक, रन्जिल और . दह हुए, उन्होंने अपने वाहु वल से माँडन्यपुर (मंडोर) का दुर्ग (किला) लेकर वहाँ ऊँचा प्राकार (कोट) बनवाया। २. रज्जिल TREAT .. (सं० १ का ज्येष्ठ पुत्र.) ३.. नरभट - (सं०२ का पुत्र) इसकी वीरता के कारण इसको 'पेल्लापेल्लि' . कहते थे ! .
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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