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________________ १५० राजपताने के जैन वीर नाथबुर्ज के नाम से प्रसिद्ध है । किले पर भगवान् का मन्दिर तथा किले से कुछ दूर एक पहाड़ पर माता का मंदिर बनाया जोविजासण माता के नाम से मशहूर है। इनका निवासस्थान प्रव... भी किले के कोट पर दरवाजे के ऊपर बना हुआ है, जिससे किले hi निगरानी हो सके । · मेहता लक्ष्मीचन्दजी: :. नाथजी के पुत्र का नाम लक्ष्मीचन्दजी था, जो खाचरौल के घाटे में सं० १९७३ के श्रावण शुक्ल ५ के दिन लड़ाई में काम आये । इनके पिता नाथजी का देहान्त पहले हो चुका था । कुछ अवसरों पर पिता और पुत्र दोनों लड़ाइयों में साथ रहे ऐसा मालूम हुआ है। वेहता जोरावरसिंहजी, मेहता जवानसिंहजी : Postpon Ca लक्ष्मीचन्दजी की मृत्यु के समय इनके दो पुत्र-जोरावरसिंहजी और जवानसिंहजी की उम्र ५ और २ वर्ष की होने के कारण नाबालगी हो गई । घर में इतना द्रव्य नहीं था, कि मौजूदा कुटुम्ब I का पालन हो सके। इनकी माता बहुत ही होशियार और वुद्धिमति थी । अनेक आपत्तियों का सामना करती हुई उसने .... अपने दोनों बच्चों को बड़ा किया । इनके भाई जो बहुत आसूदा थे, अपनी विधवा वहिन और अपने छोटे भानजों को अपने गांव मगरोम ले जाना चाहते थे किन्तु उसने यह कह कर मना किया, कि मेरे यहाँ (घर) 'हने से मेरे बच्चे मेरे पति के नाम से पुकारे जायेंगे और आपके
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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