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________________ १४२ राजपूताने के जैन वीर किल अफसरों में मनमुटाव हो गया, जो दिनों दिन बढ़ता ही गया। महाराणा ने शेरसिंह की जागीर भी जन्त करली, परन्तु फिर पोलिटिकिल अफसरों की सलाह के अनुसार वह महाराणा शम्भुसिंह के समय उसे पीछी देदी गई । महाराणा सरूपसिंह के पीछे महाराणा शम्भुसिंह के नावालिग़ होने के कारण राज्य प्रवन्ध के लिये मेवाड़ के पोलिटिकिल एजेण्ट मेजर टेलर की अध्यक्षता में रीजेन्सी कौंसिल स्थापित हुई, जिस का एक सदस्य शेरसिंह भी था । · महाराणा सरूपसिंह के समय मेहता शेरसिंह से जो तीन लाख रुपये दण्ड के लिये गये थे, वे इस कौंसिल के समय उस (शेरसिंह ) की इच्छा के विरुद्ध उसके पुत्र सवाईसिंह ने राज्य खजाने से पीछे ले लिये । इस के कुछ ही वर्ष बाद मेहता शेरसिंह के जिम्मे चित्तौड़ जिले की सरकारी रक्कम वाक्की होने की शिकायत हुई। वह सरकारी रक्कम जमा नहीं करा सका और जब ज्यादा तकाजा हुआ, तब सलूंवर के रावत की हवेली में जा बैठा, जहाँ पर उसकी मृत्यु हुई। राज्य की बाक़ी रही हुई रक्कम की वसूली के लिये उसकी जागीर राज्य के अधिकार में ले ली गई । शेर सिंह का ज्येष्ठ पुत्र सवाईसिंह उसकी विद्यमानता में ही मर गया। तब, अजीतसिंह उसके गोढ़ गया, पर वह निःसन्तान रहा जिससे मांडलगढ़ से चतरसिंह उसके गोद गया, जो कई वर्षों तक मॉडलगढ़, राशमी, कपासन और कुम्भलगढ़ आदि जिलों का . हाकिम रहा। उसका पुत्र संग्रामसिंह इस समय महद्राज सभा का
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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