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________________ मेवाड़ के वीर १९०० समरकेशरी दयालदासने कितने युद्ध किये और वह कववीरगति को प्राप्त हुआ,इसका कोई पता नहीं चलता । राणा राजसिंह जैसे समर-विशारद, जिनका कि समस्त जीवन क्रूर और सबल वादशाह औरंगजेब से मोर्चा लेने में व्यतीत हुआ हो, तब उनका मन्त्री दयालदास भी कैसा पराक्रमकारी नीतिनिपुण और युद्धप्रिय होगा, सहज में ही अनुमान किया जा सकता है। महारणा राजसिंह की मृत्यु के पश्चात् उनके पत्र जयसिंह गद्दी पर बैठे। औरंगजेव के पुत्र (अकबर द्वितीय) ने जब औरंगजेब के प्रति घावत की थी, तब अकबर का पक्ष उदयपुर वालों ने लिया था। उस समय भी मंत्री दयालदास ने एक भयंकर युद्ध किया था। ऐसे ही शुर-चोरों को लक्ष करके शायद वियोगीहरिजी ने लिखा : खल-खण्डन मण्डन-सुजन, सरल, सुहृद, सविवेक । • गुण-गंभीर, गण-सूरमा, मिलतु लाख में एक ।। . . * ३० अक्टूबर सन. ३२ JARATISABRDS -amara-.... + राजपूताने का ३० तो० ख० पृष्ट ८५५ ।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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