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________________ सम १३४ ... राजपूताने के जैन-वीर . . .. .. · राजसिंह की एक राणी ने जिससे कुँबर सरदारसिंह का जन्म हुआ. था, ज्येष्ठ कुँवर सुलतानसिंह को मरवाने और अपने पत्र को - राज्य दिलाने का प्रपंच रचा । उसके शक दिलाने पर महाराणा ने कुँवर सुलतानसिंह को मारडाला । फिर उसी राणीने महाराणा को विष दिलाने के लिये, उसी पुरोहित को, जिस के यहाँ दयालदास नौकर था, पत्र लिखा, जो उसने अपने कटार के खीसे में रख लिया । संयोग वश एक दिन किसी त्योहार के अवसर पर दयालदास ने अपने ससुराल देवाली नामक ग्राम में जाते समय रात्रि होजाने से पुरोहित से अपनी. रक्षा के लिये कोई शस्त्र माँगा पुरोहित ने भूलकर वह कटार उसे दे दिया, जिसके खीसे में उपयुक्त पत्र था। दयालदास कटार लेकर वहाँ से रवाना हुआ, घर जाने पर उस कटार के खीसे में कोई काराज होना दीख पड़ा पढ्ने लगा। जब उसे उस पत्र से महाराणा की जान का भय दीख पड़ा, तब . उसने तत्काल महाराणा के पास पहुँच कर वह पत्र उसे बतलाया, इसपर उक्त महाराणा ने राणी और-पुरोहित को मार डाला । जब इस घटना का हाल कुँवर सरदारसिंह ने सुना, तब उसने भी विष खाकर आत्मघात कर लिया। ___ दयालदास की .उक्त सेवा से प्रसन्न होकर महाराणा ने उसे. अपनी सेवा में रखा और बढ़ते बढ़ते वह उसकी प्रधान (मंत्री) होगया । ... उसने राजसमन्द की पाल के समीप पर संगमर्मर . का आदिनाथ का एक विशाल चतुर्मुख जैन मन्दिर बड़ी लागत और श्राश्वये के साथ वह उस काराजका
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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