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________________ राजपूताने के जैन वीर १०० नाम से प्रसिद्ध है। पूजा के योग्य तू है, वणिक सजिव श्री शक्ति की मूर्ति तू है । है आहा! धन्य तेरा: वह धन, जननी भक्ति की मूर्ति तू है ॥ · तुझ से स्वामी भक्ति : चतुर मंत्री वर आत्मा त्यागी वीरः । भारत में क्या दुर्लभ है इस वसुधा में भी धार्मिक धीर । --श्री ढोचनमसाद पाण्डेस XXXX91.9% १ [१ मार्च सन् ३० ] <XXXXXX S जीवाशाह "महाराणा प्रतापसिंहका प्रधान मंत्री भामाशाह था । महाराणा अमरसिंह के समय तीन वर्ष तक वही प्रधान बना रहा । वि० सं० १६५६ माघ सुदी ११ ( ई० स० १२०० ता० १६ जनवरी) को भामाशाह का देहान्त हुआ । उसके पीछे महाराणा ने उसके पुत्र जीवाशाह को अपना प्रधान बनाया। सुलह होने पर कुँवर : कर्णसिंह जब बादशाह जहाँगीर के पास अजमेर गया, उस समय यह राजभक्त प्रधान जीवाशाह भी उसके साथ था । " + २६ अक्टूबर सन् ३२
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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