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________________ मेवाड़ के वीर ९७ निःसन्देह वह दिन धन्य होगा, जिस दिन भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिये जैन समाज के धन कुबेरों में भामाशाह जैसे सद्भावों का उदय होगा। X X X जिस नररत्र का ऊपर उल्लेख किया गया है, उसके चरित्र, दान आदि के सम्बन्ध में ऐतिहासिकों की चिरकाल से यही धारणा रही है । किन्तु हाल में रायबहादुर महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर होराचंदजी ओझा ने अपने राजपूताने के इतिहास तीसरे खण्ड में "महाराणा प्रताप की सम्पत्ति शीर्षक के नीचे महाराणा के निराश होकर मेवाड़ छोड़ने और भामाशाह के रुपये दे देने पर फिर लड़ाई के लिये तैयारी करने की प्रसिद्ध घटना को असत्य ठहराया है । इस विषय में आपकी युक्ति का सार 'त्यागभूमि' के शब्दों में इस प्रकार है : "महाराणा कुम्भा और सॉंगा आदि द्वारा उपार्जित अतुल सम्पत्ति अभी तक मौजूद थी, वादशाह अकबर इसे अभी तक न ले पाया था । यदि यह सम्पत्ति न होती तो जहाँगीर से सन्धि होने के बाद महाराणा अमरसिंह उसे इतने अमूल्य रत्न के से देता ? आगे आने वाले महाराणा जगतसिंह तथा राजसिंह अनेक महादान किस तरह देते और राजसमुद्रादि अनेक वृहत-व्ययसाध्य कार्य किस तरह सम्पन्न होते ? इस लिये उस समय भामाशाह ने अपनी तरफ़ से न देकर भिन्न-भिन्न सुरक्षित राज "
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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