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________________ राजपूताने के जैन-चीर वीर भामाशाह ! तुम धन्य हो !! घाज प्रायः साढ़े तीन सौ : वर्ष से तुम इस संसार में नहीं हो परन्तु यहाँ के बच्चे की जवान पर तुम्हारे पवित्र नाम की छाप लगी हुई है ।। जिस देश के लिये ' तुमने इतना बड़ा आत्म त्याग किया था, वह मेवाड़ पुनः अपनी स्वाधीनता प्रायः खो बैठा हैं। परन्तु फिर भी वहाँ तुम्हारा गुण गान होता रहता है। तुमने अपनी अंतयकीर्ति से स्वयं को ही नहीं किन्तु समस्त जैन- जांतिका मस्तकं ऊँचा कर दिया है । † नेवाड़ का अमूल्य और अप्राप्य ऐतिहासिक अन्यरत्न "वीराविनोद" में जिसको कि मुझे सौभाग्य से मान्य ओझानी के यहाँ देखने का जरा सो अवसर मिल गया' या पृ० २५१ पर लिखा हैं कि: भामाशाह बड़ी दुरअंत का आदमीया । यह महाराणा प्रतापसिंह के शुरू समयं से महाराणा अमरसिंह के राज्य के ॥ तथा २ वर्ष तक प्रधान रहा । इसने ऊपर लिखी हुई बड़ी बड़ी लड़ाइयों में हजारों अदनियों का खर्च चलांचा । यहं नामी प्रधान संवत् १६५६ माघ शुक्ल ११ (हि० १००९ ॥ सा० ९ ई० १६०० ता० २७ जनवरी) को ५१ वर्ष और ७ महीने की उत्तर में परलोक को सिधारा । इसका उन्न संवत् १६०४ आषाढ़ शुक्ल १० (हिο' ९५४ ता० ९ उमादि युल भावल ई० १५४७ ता० २८ जून) सोमवार को हुआ था। इसने मरनेके एक दिन पहले नपनी स्त्री को एक वही अपने हाथ की लिखी हुई दी और कहा कि इसने मंबाड़ के बचने का कुल हाल लिखा हुआ है। - जिस बक तकलीफ हो यह वही उन महाराणा की नत्र करना । यह भैरहवाह महाराणा अमरसिंह का कई वर्षों तर्क घंटे अवाशाह को महाराणा नमरसिंह . प्रधान इस बही के लिखे कुल सजने से खर्च चलाता रहा। मरने पर इसके ने प्रधान पद दिया था। वह भी ख़ैरस्वाह आदमी था। लेकिन मामाशाह की सानी का होना कठिन था । १
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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