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________________ दिलो में गुरु के प्रति श्रद्धा असतोप या बहुमान में कमी आने का कारण नही वनेगा ? सत्य भी हो तो भी यह व्यवहार के प्रतिकूल है। गुरु की भूल भी हो जाय तो भी शिष्य के लिए यो फटे मुंह बोलना उचित नही कहा जा सकता। ऐसा कहना उसके दभ और विनय-हीनता ही का लक्षण होगा । तीर्यकर जैसे महापुरुषों के लिए ऐसे अनहोने, अनुचित वचन बोलने वालो को तो बलिहारी ही है । जन्म चूके सिद्ध करने के लिए उनके पास यही तो उत्तर है - " केवली भगवान ने ही आगे चल कर ऐसे व्यवहार को पाप पूर्ण कहा है। धर्म हो तो अगे चल कर जाने दोगियों को ही उन्होंने क्यो नही बचाया होता ? अपनी तरफ मे थोडे ही कुछ कह रहे हैं। हम तो उनकी प्ररूपणा के आशन पर ही निर्णय करते हैं ।" पर हमे समझना है कि भगवान के आगय को समझने और समझाने वाले आप है कीन? पाँचो ज्ञान में मे, बिना एक भी ज्ञान के धणी । ने मृत्यु पर्यन्त पूर्ण एक भी ज्ञान को प्राप्त न कर सकने वाले शून्य के स्वामी। महापुरुषों के कथन का आगय समझना भी मामूली बात थोडे ही है । क्या यही आय नमन पाये । पहले किसी आगय समझने वाले ने जन्म ही नही लिया। यदि इनके हिसाब से भगवान ही चूक सकते है, तो कही ये भी आशय नमलने में चूक रहे हो तो क्या वडी बात है ? इनके आशय समझने में भी तो चूक हो सकती है । यह कार्य ठीक वैसे ही हुआ है जैसे एक अर्ध पागल व्यक्ति बिना आगा-पोछा विचारे, किनी की भी भूल निकालने में ही अपनी शान समझता हो। वह यही समझ कर इतराता है- "म किसी को माफ नही कर सकता, मेरे सामने कौन होता है यह १" मावारण श्रेणी का व्यक्ति भी भूल होने पर अपनी भूल स्वीकार करता है तो क्या तीर्थकर भगवान जैसे परम पुरुष अपनी भूल स्त्रीकार नही करते ? पीछे तो उसके लिए दंड लेते, आलोयणा करते । मुनिराज से भी भून होने पर आज वेद लेते है | आचार्य श्री भीखणजी के हिसाव से परमात्मा भूल कर गये । शायद आवेश में कर गये होगे, आवेश आ गया होगा । पर वाद में तो उनका आवेश उतरा होगा या समझ आई होगी, भूल समझी होगी । उसके लिये उन्होने दड लिया था, क्या ? १०१
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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