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________________ इन प्रश्न से प्रसन्नता इसलिए हो रही है कि लाभ को गर्त के साथ, कम से कर्म प्रम्न- कर्ता में इन व्यवहार को अपनाने की इच्छा है। सभी अमूर्ति पूजक भाइयों को यह शर्त मजूर है या नहीं, नहीं कह सकते लेकिन जिन्हे मजूर है उनकी महृदयता को हम नह वीकार करते है । अब इन्हें यदि हम मूर्ति-पूजा मे लाभ दिया के तीर उज्ज्वल भविष्य की बागा की जा सकती है । एक मुनि महाराज ने मौन ले रखता है । तपस्या चल रही है । वे ध्यान में लीन कार्यान्य मुद्रा में विराजमान है । ऐमे मुनिराज के स्थान पर यदि हम जी और उनके दर्शन करते हुए उनको चन्दन इत्यादि करें तो हमें कुछ लाभ होगा या नहीं ? उत्तर स्पष्ट है- "लाभ ही होगा" 1 यदि कोर्ट उच्छ गल विभागवाला भाई पाठकों ने ही पूछ बैठे"क्या लाभ होगा मुनिराज ने कोई उपदेन नहीं दिया, न आहार इत्यादि ग्रहण के लिए हम उनने प्रार्थना ही कर सके । उल्टे जाने-आने की हिसा हमने को। हिना का लाभ हुआ गमने तो बात अलग है, लेकिन श्रीर लाभ होता दिलाई नहीं देना ।" पाठकवृन्द नीचे | क्या उनका कहना उचित है ? यदि उचित नहीं है तो नमजाइये वह कं भूल कर रहा है। आप कहेंगे"व्यानी, तपस्वी मुनि - महाराज के दर्शन मे लाभ ही हुआ । वे नही बोले और उन्होंने उपदेश नहीं दिया तो इसमें क्या हुआ ? उनके दर्शन और वन्दन का तो लाभ मिला। यह लाभ भी कम नही । ऐमे मुनिराजो के पास जाना ही अत्यन्त लाभ का कारण होता है ।" किन्तु आपके इतना नमझाने पर भी उने मतोप नहीं होता। वह फिर आप ने पूछना है- "दर्शन और वन्दन मे कौन-सा श्रीर कितना लाभ होता है, मुझे तो यही जानना है। मुझे इसमें कुछ भी लाभ नजर नही आता । उनके दर्शनी से ही लाभ यदि हो तब उन वृक्षों और पशु-पक्षियों को हम मे अधिक लाभ होता होगा जो प्रायः चौबीसो घंटे उनके सामने रहते हैं, वे दर्शन भी करते है और झुक-२ कर वन्दन भी। मुझे स्पष्ट समझाइये, कैसे लाभ पहुँचा और कितना लाभ पहुँचा ? मैं तो जैना गया वैसा ही चला आया । न कुछ सुना, न समझा ।" उनके असंतोष को देखते हुए, बाप उसे और अधिक तत्परता से समझायेंगे । ५१
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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