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________________ आ जायेगी ? हमारी आय के हिसाब से यदि हमें केसर, चन्दन, प्राप्त होने की गुजाइश न हो तो कोई हर्ज नही, कलश में थोडा जल लेकर, परमात्मा में बहुमान उत्पन्न कर लेना ज्यादा अच्छा है बनिस्बत इसके कि हम दूसरो की सहायता पर खूब चदन घिसा करे। इतने शुद्ध हेतु के लिए भी यदि हम कलह कर लेते है तो यह महान् दुःख की बात है। पूर्वजो के स्वच्छ नियमो की हमे अवहेलना नहीं करनी चाहिए। मदिर तो मनुष्य मात्र को सपत्ति है। इस पर सभी का समान अधिकार है। यहाँ जरा भी भेदभाव ऊँच-नीच, गरीब-अमीर का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। रग भेद के उत्पन्न होने का कोई कारण नही । जिन परमात्मा के हम उपासक हैं वे खुद ही गोरे, काले, नीले, पीले, लाल इत्यादि रगो के हुए है। यही नहीं, किसी भी वात का भेद-भाव हमारे महान् विवेकी पूर्वजो ने रक्खा ही नहीं है। घृणा की है तो अवगुणो से, पूजा की है तो गुणो की। शुद्ध समाज रचना की उनको कितनी विशाल दृष्टि रही, यह हमारे सामने ही है । आज ससार के महान् लोग समाज रचना के सम्बन्ध में खूब विचार करते है पर क्या ही अच्छा होता यदि वे हमारी इस समाज रचना पर भी दष्टिपात कर लेते। हमें पूर्ण विश्वास है कि ऐसी समाज रचना से,अति अल्प काल में ही विकट से विकट समस्या वडी आसानी से हल की जा सकती है। सु-व्यवस्या: हमारे पूर्वजो ने मदिरो को शुद्ध सार्वजनिक सम्पत्ति माना है। जिससे सभी उसको अपना समझ सकें और उससे लाभ उठाने में या उसकी रक्षा करने में किसी के मन में जरा भी सकोच उत्पन्न न हो। करोडो रुपये लगाने वालो ने भी कभी अपना आधिपत्य नही जमाया। अपना नाम तक उसमें नही लिखवाया। आज तो हम मदिरो पर अपना-अपना अधिकार समझते है। यह सकीर्णता बहुत बुरी है। इस सकीर्णता को हमें दूर करना चाहिए। हम मदिरो की व्यवस्था में अधिक भाग लेते है तो क्या हुआ? हमारा किसी पर एहसान नहीं है या इससे यह सपत्ति हमारी नही बन जाती है। ___ हमारी सेवा का समाज उपकार माने या न माने, इसका हम जरा भी विचार न करें। मान तया वडाई की भूख से किया गया कार्य उतना अच्छा नहीं होता जितना अपना हित और कर्तव्य समझ कर । हम हर समय यही ध्यान रखें १९३ 13
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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