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________________ तान ही किस बात की। तब पडित लोग भी अपने हठ का त्याग कर देंगे और अपेक्षा से हर क्रिया के लिए उदारता अपना लेगे। इस तरह यह कलह समाप्त किया जा सकता है। दूसरा कारण, जो हमारी 'शिथिलता' से सम्बन्धित है, हमारे लिए गभीर विचार का विषय है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति यदि अपने-अपने कर्तव्य के प्रति जागरुक रहे तो कार्य मे शिथिलता व्याप्त हो नही होगी। पर मदिरो के कार्य में शिथिलता आ हो जाती है। कहावत है 'सीर को मा को सियालिये खाते है, 'या अधिक मामो का भानजा भूखा रह जाता हे। वही यहाँ भी चरितार्थ होती है। सोचने वाला सोच लेता है, “मदिरो की व्यवस्था तो करनेवाले करते ही है, वडो के बैठे इसमे मेरे हस्तक्षेप की आवश्यकता ही क्या है ?" ऐसा विचार वह कोई विनय भाव से नही अपना रहा है बल्कि व्यवस्था के परिश्रम से बचने के लिए ही यह वहानेवाजी है। तब हमे सोचना चाहिए कि सभी यदि इसी प्रकार सोचने लग जाय तो मदिरो की रक्षा और व्यवस्था कैसे सभव होगी? यदि हम मदिरो से लाभ उठाना चाहते है तो अपने हिस्से का कार्य हमे करना ही होगा। फिर भी कार्य करना समाज की इच्छा पर ही निर्भर है। इसमे किसी की जोर जबरदस्ती नहीं चल सकती। जब हमारी समझ में यह आ जाय कि समाज के लोगोकी कार्य मे रुचि कम होती जा रही है या किन्ही कारणो से वे समय नही दे पा रहे है तो उचित यही है कि कार्य के फैलाव को सीमित करते हुए हम उसे समेटते चले। यदि हम गौर से देखे तो मदिरो की यह भी एक विशेषता मालूम पडेगी कि उनके कार्य को जितना सीमित करना चाहे हम कर सकते है । फिर हम विवेक से क्यो न उचित उपाय अपनावे । हमे दुख पाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है । अच्छी साहिवी है तो मन भर फूलोसे पूजा कर सकते है, गरीव हैं तो फूल की एक पखुडी भी यथेष्ट है। अवकाश है तो रात-दिन स्वाध्याय में लग सकते है। कार्यवश अवकाश नहीं है तो पाच मिनट ही सही। मिला, उतना ही लाभ । यदि हमारा गाव छोटा है तो एक झोपडी में परमात्मा की छोटी सी प्रतिमा स्थापित कर उसी से काम चला लेना हमारे लिए लाख गुना अच्छा है अपेक्षाकृत १९०
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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