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________________ ध्यान रखना उचित है कि हमारे कारण किमीकी प्रभु भक्ति में जरा भी अंतराय न पडे और न किसी प्रकार ने कपाय ही उत्पन्न हो । आपन का प्रेम बढाने के लिए हमे क्षमावान होना जरूरी है। किसी से भूल हो जाय, कोई अविनय कर बैठे तो भी हमे क्षमावृत्ति रखनी चाहिए । वास्तव में इमे हम अपना परीक्षा- काल हो नमने । हमे समाज के साथ रहकर कार्य करना है । अपना आंतरिक ध्यान —पूजा में हम अपना भी पूरा-पूरा ध्यान रखे । हमें अपने आप ने भी बडा धोखा होता रहता है । 'मान' हमारा जबरदस्त पोछा करता है । उनके कारण पूजा ने हमें जितना लाभ पहुंचना चाहिए उतना पहुँच नहीं पाता और उल्टे कभी-२ हानि हो जाती है । अपनी वढिया पोशाक, रंगीली कैमर, उत्तम चढावा, सुन्दर रूप, सिलता योवन, ज्ञान गरिमा, सुरीले कठ विपुल नमृद्धि आदि मे नम्वन्धित अनेक प्रकारका अभिमान हमारे जी में आ ही जाता है । हम अपने आप को दूसरो ने बहुत अधिक नमझने लगते है। दूसरी से प्रशमा प्राप्त करने के लिए या उन पर रौब डालने के लिए अनेक तरह की हरकते हम जानबूझ कर करते है । वस्तुत ये भाव हीरे को कीडी के बदले वेचने के बराबर है । हमें व्रत करग मे प्रसन्नतापूर्वक परमात्मा का गुणगान करना है । न किसी ने वाह-वाही लूटनी है, न अपना वैभव ही दिखाना है । हृदय के ऐसे भाव अत्यन्त महितकर होते है । पूजा मे गाने के समय प्राय हम बहुत कम उपयोग रखते हैं । कठ हमारा मुरोला हो लयवा न हो, राग ठीक मे आती हो या न आती हो और परमात्मा की दिल में हो अथवा न हो, आगे होकर गाने में हम बडी गान समझते है । क्या माय-२ गाने ने परमात्मा में हमारा अनुराग नही बढेगा ? ऐसे तो मंदिर मे पांच मिनट भी बैठकर हम नही गायेंगे पर जहाँ समाज इकट्ठा होकर पूजा इत्यादि का कार्यक्रम रखेगा वहाँ लड-झगड, ताल को वेताल कर गायेंगे जरूर। मानो परमात्मा के भक्त तो हम हो है । वस्तुत यह अपने वैशिष्ट्य का प्रदर्शन मान ही है । यदि हम गाना बहुत अच्छा गाते हो और समाज गाने के लिए आग्रह करे तो १८३
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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