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जैनशासन
नही होता । अतएव आनन्दके विनाशके भयसे तुम्हे धर्मसे विमुख नही होना चाहिए ।"
इससे यह बात प्रकट होती है कि विश्वमे रक्तपात, सकीर्णता, कलह आदि उत्पातोका उत्तरदायित्व धर्मपर नही है। धर्मकी मुद्रा धारण करनेवाले धर्माभासका ही यह कलकमय कारनामा है । अधर्म या पापसे उतना अहित अथवा विनाश नही होता, जितना धर्मका दम्भ दिखानेवाले जीवन अथवा सिद्धान्तोसे होता है । व्याघ्रकी अपेक्षा गोमुख व्याघ्रके द्वारा जीवन अधिक सकटापन्न बनता है।
लार्ड एवेबरीने ठीक ही कहा है कि “विश्वमे शान्ति तथा मानवोके प्रति सद्भावनाका कारण धर्म है, जो घृणा तथा अत्याचारको उत्तेजित करता है, उसे शब्दश धर्म भले ही कहा जाय, किन्तु भावकी दृष्टि से यह पूर्णतया मिथ्या है ।" डा० भगवानदासका कथन है- " सल्तनतो और कूटनीतिकी वाँदी बनकर साइसने मजहबसे कही ज्यादा मारकाट की है, पर यह सब झगडा न सच्ची साइसका नतीजा है और न सच्चे धर्म या मजहब का । यह नतीजा है हमारे अन्दरके शैतान, हमारी खुदी, हमारे स्वार्थ और हमारे अहकारका । हम अपनी छोटी झूठी और चदरोजा गरजोके लिए साइस और मजहब दोनोका गलत उपयोग करते है और दोनोको बदनाम करते ह। मजहबके नामपर झगडे दुनियामे हुए है और होगे, पर इन झगडोकी वजहसे मजहबको दुनियासे मिटानेकी कोशिश ऐसी है जैसे रोगको दूर करनेके लिए शरीरको मार डालने की कोशिश ।
१ "धर्मः सुखस्य हेतुः हेतुर्न विराधकः स्वकार्यस्य ।
तस्मात् सुखभगभिया मा भूः धर्मस्य विमुखस्त्वम् ॥ २० ॥” "Religion was intended to living peace on earth and good-will towards men, whatever tends to hatred and persecution, however correct in the letter, must be utterly wrong in the spirit."
३ विश्ववाणी अंक ४८