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६. समर्पण
उन तत्त्वजिज्ञासुओको
जे सदैव तत्त्व-चिन्तनमें निमग्न रहते है, सत्य और अहिंसा ही जिनकी साधनाके और-छोर है; दुराग्रह तथा एकांगी विचारोंसे चित्तको दूषित न कर जो समत्व और समन्वयके मार्ग अपनाये हुए है; तथ्यको परखते समय विश्वके विराट् स्वरूपको विविध दृष्टिभंगियोंसे देखनेका
जिन्हें अभ्यास है
सुमेरुचन्द्र दिवाकर